Shankar Loh
शंकर लौह
गुण और उपयोग (Uses and Benefits) :-
- यह रसायन वात-पित्त, कुष्ठ, विषमज्वर, गुल्म, नेत्ररोग, पाण्डु रोग, अधिक निद्रा, आलस्य, अरुचि, शूल, परिणामशूल, प्रमेह, अपबाध्य, शोथ, विशेषतया रक्तस्राव, अर्श और वलीपलित रोगों के लिए अत्युत्तम हैं।
- यह बल, कान्ति तथा वीर्य-वर्द्धक है और शरीर को स्वस्थ एवं पुष्ट करके पुत्रोत्पादक शक्ति प्रदान करता है। रक्तार्श (खूनी बवासीर) में यह अमृत तुल्य गुण करता है। इसकी परीक्षा अनेक बार हो चुकी है।
- रक्तार्श में मस्से लाल अथवा बट-अंकुर के समान होते हैं और पित्तजन्य बवासीर के लक्षणों से युक्त होते हैं, दस्त उतरने में तकलीफ और मस्से दबने से उनमें से गरम-गरम रक्त निकलता हैँ। यह रक्त अधिक निकलने से शरीर पीले वर्ण का हो जाता है और त्वचा कठोर हो जाती है, नाड़ी की गति मन्द हो जाती है, खट्टी वस्तु तथा शीतल पदार्थ खाने की इच्छा, बल और शारीरिक शक्ति का हास, मन में बेचैनी, दस्त का रंग काला-रूक्ष-कठोर होना, अधोवायु का न खुलना अर्थात् वायु की अधोमार्ग से गति न होना-इत्यादि लक्षण होते हैं। इसमें यह रसायन अमृत के समान गुण करता है, क्योकि इस रसायन का प्रभाव आंतों पर विशेष होता है। आँतों में पहुँचकर यह कुछ मलबन्ध अवश्य उपस्थित कर देता है। किन्तु विशेष मलबन्ध नहीं होता है, क्योकि इस रसायन में विरेचक द्रव्य-त्रिफलादि द्वारा भावना दी जाती है और इसका अनुपान भी पित्त-विरेचक पदार्थ ही रहता है। जैसे आंतों के लिए यह बन्धक है, वैसे ही शरीर से होने वाले रक्तस्राव के लिए भी ग्राही है। अतएव इसे रक्तार्श में प्रयोग करने से शीघ्र लाभ होता है।
- लौह आँतों की अन्तःकाला द्वारा रक्त में प्रवेश करता और वहाँ से यकृत् में पहुँचता है। यकृत् में इसके कुछ ऐसे ऐन्द्रिक संयोग बनते हैं, जो शरीर में लीन हो जाते हैं।
- यह योग रक्त के रंजक द्रव्य से बहुत कुछ मिलते-जुलते होते हैं और सम्भवतः वही संयोग हेमोग्लोबिन में बदल जाते हैं। अतएव इस योग में इस रसायन के प्रयोग से रक्ताणुओं और रंजक द्रव्य की वृद्धि हो जाने से शरीर के प्रत्येक अंग में स्फूर्ति बढ़ जाती हैं और अवयव अपने-अपने कार्य करने में भी समर्थ हो जाते हैं। | –औ. गु. ध. शा.
मात्रा और अनुपान (Dose and Anupan) :- 1-1 रत्ती सुबह-शाम मधु से अथवा गाय या बकरी के दूध के साथ दें।
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि ( Main Ingredients and Method of Preparation): – उत्तम कान्त लौह 64 तोला को त्रिफला क्वाथ में घोटकर छोटी-छोटी टिकिया बना, सुखा, सराब-सम्पुट में बन्द कर गजपुट में फूंक दें। इसी प्रकार अदरख, सफेद भांगरा, काला भाँगरा, मानकन्द, भिलावा, चित्रक, जिमीकन्द, हस्तिकर्ण, पलाश–इनके रस और थूहर का दूध-प्रत्येक की 1-1 भावना देकर गजपुट दें। फिर त्रिफला 68 तोले को आठगुने पानी में पका, अष्टमांश पानी शेष रहने पर छान करके उस क्वाथ में इस भस्म को मिला दें और 32 तोला घी भी इसी में मिलाकर तांबें के बर्तन में रख, चूल्हे पर चढ़ा, लोहे की कलछी से चलाते रहें। जब घी स्वच्छ होकर ऊपर आ जाये तो मूदु-मध्य तथा तीव्र अग्नि से पकाकर रख लें। भा. भै. र.
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