Aawla Murabba

आँवला-मुरब्बा
गुण और उपयोग (Uses and Benefits) :-
- यह मुरब्बा अत्यन्त स्वादिष्ट और पित्तशामक है।
- इसके उपयोग से दाह, सिर-दर्द, पित्त कोप, चक्कर, नेत्र-जलन, बद्धकोष्ठ, अर्श, रक्तविकार, त्वचा दोष, प्रमेह और वीर्य के विकार नष्ट होते हैं।
- यह पित्तवृद्धि को शमन करता और शरीर को बलवान बनाता है।
- प्रवाल भस्म (चन्द्रपुटित) या मोती पिष्टी के साथ खाने से पित्त विकार, अन्तर्दाह और जलन आदि में विशेष लाभकारी है।
मात्रा और अनुपान (Dose and Anupan) :- 1-2 आँवले, चाँदी के वर्क के साथ खायें या किसी पित्तशामक औषध के अनुपान रूप में भी लिया जा सकता है। |
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि ( Main Ingredients and Method of Preparation): – ताजे सुपुष्ट बड़े-बड़े आँवलों को बांस की शलाका या जर्मन सिलवर अथवा पीतल के कलईदार काँटे से चारों ओर से अच्छी तरह से गोद (छिद्र कर) दें। फिर चूने के निथरे हुए जल में 24 घण्टे भिंगो दें। पश्चात् आँवले निकालकर साफ पानी के साथ अग्निपर चढ़ा कर हल्का जोश देकर नीचे उतार लें और पानी से निकाल कर कुछ देर छाया में सुखा लें। आँवले से आधे वजन की शक्कर की 2 तार की चाशनी बनाकर उसमें ये आँवले डालकर 8-10 दिन रखा रहने दें। बाद में उस चाशनी को निकाल दें और पुनः आँवले के समान वजन की शक्कर की चार तार की चाशनी बनाकर उपरोक्त आँवले मिला दें और कुछ समय अग्नि पर ही रसगुल्लों की तरह चाशनी में ही पकाकर उतार कर ठण्डा करके चाशनी सहित इमरतदान में भरकर रख दें। इस प्रकार बनाने से मुरब्बे में से अम्लता नष्ट हो जाती है और मुरब्बा उत्तम, स्वादिष्ट, मीठा एवं अधिक समय तक टिकाऊ बना रहता है तथा विशेष गुणकारी भी हो जाता है। –आनुभविक एवं प्रचलित योग