Pushyanug Churan

पुष्यानुग चूर्ण नं. १
गुण और उपयोग–
- इस चूर्ण के सेवन से योनि-रोग, योनिदाह, सब प्रकार के प्रदर-रक्त, श्वेत, नीला, काला व पीला-योनिस्राव (प्रदर), योनिक्षत, बादी तथा खूनी बवासीर, अतिसार, दस्त में खून आना, कृमि और खूनी आँव जैसे रोग नष्ट होते हैं।
- स्त्रियों के बहुत से रोगों की जड़ उनके गुहच (गुप्त) स्थान के रोगों में मिल जाती है ।
- अकाल (छोटी आयु) में अति समागम तथा गर्भधारण, गप्तांगों की सफाई न रखना गर्भावस्था में प्रसव के समय या उसके बाद योग्य उपचार का अभाव, खट्टे या बासी आदि दोषकारक आहार-विहारादि कारणों से स्त्रियों की गुप्तेन्द्रिय (योनि) में विकृति पैदा हो ` जाती है। फिर उसका परिणाम बुरा होता है। यथा-गर्भाशय फूल जाना या योनि से किसी का स्राव शरू हो जाना आदि। ऐसी अवस्था में पष्यानग चूर्ण का उपयोग करना चाहिए।
- किसी-किसी स्त्री को गर्भाशय बाहर निकल जाने की शिकायत बराबर बनी रहती है। ऐसी अवस्था में योनि से किसी भी प्रकार का स्राव होने पर इसका उपयोग बहुत लाभ पहुँचाता है।
- सभी प्रकार के प्रदर रोगों में यह विशेष गुणकारी सुप्रसिद्ध औषधि है।
मात्रा और अनुपान–२ से ३ माशा तक सबह-शाम शहद के साथ लेकर ऊपर से चावल का धोवन (पानी) पीना चाहिए।
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि : पाठा, जामन की गठली की गिरी, आम की गठली की गिरी, पाषाण भेद, रसौत अम्बष्ठा, मोचरस, मंजीठ, कमलकेशर, केशर, अतीस, नागरमोथा, बेल-गिरी, लो ध गेरू, कायफल, कालीमिर्च, सोंठ, मुनकका, लालच॑न्दन, सोना पाठा (स्योनाक-अरलू) की छाल, इन्द्रजौ, अनन्तमल, धाय के फल, मुलेठी और अर्जुन की छाल-प्रत्येक समभाग (मल ग्रन्थ में ये सब चीजें पुष्यनक्षत्र में एकत्रित करने को लिखा है) लेकर एकत्र कट-कपड़छन कर महीन चर्ण बना, रख लें। भै. र. ` नोट–कई लोग केशर के स्थान पर नागकेशर डालकर भी बनाते हैं एवं उसे पुष्यानुग चूर्ण नं. २ कहते हैं।