Kumarkalyan Ghrit

Kumarkalyan Ghrit

कुमारकल्याण घृत गुण और उपयोग (Uses and Benefits)  : इस घृत के सेवन से बल, वर्ण, रुचि, जठराग्नि, मेधा और कान्ति बढ़ती है। दाँत आने के समय बालकों को इसके सेवन कराने से बिना उपद्रव के दाँत निकल आते हैं। बालशोष में 3 माशा इस घृत में 2 रत्ती गोदन्ती भस्म और 4 रत्ती सितोपलादि चूर्ण…

Sundrikalp

Sundrikalp

सुन्दरीकल्प गुण और उपयोग (Uses and Benefits)  : मात्रा और अनुपान गुण और उपयोग स्त्री रोगनाशक, अनेक उत्तमोत्तम औषधियों के मिश्रण से निर्मित इस महौषधि के सेवन से खरियों को होने वाले समस्त प्रकार के रोग शीघ्र नष्ट होते हैं-तथा रक्तप्रदर, श्वेत प्रदर, कष्टार्तव, पाण्डु, गर्भाशय तथा योनिभ्रंश, डिम्बग्रन्थि-प्रदाह, हिस्टीरिया, बन्ध्यापन, ज्वर, रक्तपित्त, प्रमेह, मूत्रकृच्छ, मूत्राघात,…

Sarivadiasava

Sarivadiasava

सारिवाद्यासव गुण और उपयोग (Uses and Benefits)  : यह आसव 20 प्रकार के प्रमेह, पीड़िका, उपदंश और इसके उपद्रव, वातरक्त, भगन्दर, मूत्रकृच्छू, नाड़ीब्रण, पीब बहने वाले फोड़े-फुन्सियोँ आदि रोगों को नष्ट करता है। यह आसव रक्तशोधक, रक्तप्रसादक, मूत्रशोधक और पेशाब साफ लाने वाला है। अधिकतर प्रमेह रोग बहुत दिनों तक ध्यान में नहीं आता है। जब…

Sarasvatarist

Sarasvatarist

सारस्वतारिष्ट गुण और उपयोग (Uses and Benefits)  : इसके सेवन से आयु, वीर्य, धृति, मेधा (बुद्धि), बल, स्मरणशक्ति और कान्ति की वृद्धि होती है। यह रसायन–हद्य अर्थात्‌ हृदय के रोगों को दूर करने वाला या हृदय को बल प्रदान करने वाला है। बालक, युवा (जवान), वृद्ध, स्री, पुरुषों के लिए हितकारी है। यह ओजवर्द्धक है। इसके…

Shrikhandasava

Shrikhandasava

श्रीखंडासव गुण और उपयोग (Uses and Benefits)  : इसके सेवन से मद्यजनित रोग यथा–पानात्यय, पानविभ्रम, पानाजीर्ण आदि रोग दूर होते हैं। पैत्तिक (पित्तजन्य) रोगों में इसका विशेष उपयोग किया जाता है। रक्तपित्त, प्यास कीं अधिकता, बाह्यदाह और अन्तर्दाह, रक्तदोष, मूत्रकृच्छू, मूत्राघात, शुक्रदोष आदि विकारों में भी यह उत्तम लाभदायक है। मात्रा और अनुपान  (Dose and Anupan) …

Lohasava

Lohasava

लौहासव गुण और उपयोग (Uses and Benefits)  : पाण्डु, गुल्म, सूजन, अरुचि, संग्रहणी, जीर्णज्चर, अग्निमांच्च, दमा, कास, क्षय, उदर, अर्श, कुछ, कण्डू, तिल्ली, हृद्रोग और यकृत्‌-प्लीहा की विकृति को नष्ट करता है। जीर्णज्वर अथवा अधिक दिन तक मलेरिया ज्वर (विषमज्वर) आने से यकृत्‌ या प्लीहा की वृद्धि होने पर इस आसव का प्रयोग किया जाता है।…

Lodharasava

Lodharasava

लोधासव गुण और उपयोग (Uses and Benefits)  : पेशाब की जलन, बार-बार या अधिक मात्रा में बूँद-बूँद पेशाब होना, मूत्राशय का दर्द, पेशाब की नली की सूजन, धातुख्राव होना–विशेष कर स्वप्नावस्था में, कफ, खाँसी, चक्कर आना, संग्रहणी, अरुचि, पाण्डु रोग आदि इसके सेवन से नष्ट होते हैं। यह आसव पाचक, रक्त को शुद्ध करने वाला तथा…

Rohitakarist

Rohitakarist

रोहितकारिष्ट गुण और उपयोग (Uses and Benefits)  : इसके सेवन से तिल्ली, यकृत्‌, वायुगोला, अग्निमान्द्य, हद्रोग, पाण्डु, संग्रहणी, कुष्ठ शोथ (सूजन) आदि रोग दूर हो जाते हैं। यह रक्तशोधक और पाचक भी है। प्लीहा अथवा यकृत्‌ बढ़ जाने से शरीर कमजोर हो जाना, भूख नहीं लगना, अग्निमान्द्य हो जाना, पेट भरा रहना, अन्न में अरुचि, खाने…

Mustakarist

Mustakarist

मुस्तकारिष्ट गुण और उपयोग (Uses and Benefits)  : इस अरिष्ट के उपयोग से जीर्ण और नवीन अतिसार तथा संग्रहणी रोग नष्ट होते हैं। इसके अतिरिक्त यह अजीर्ण, मन्दाग्नि, विसूचिका (हैजा) और उदर रोगों को नष्ट करता है और दस्त के पतलेपन को गाढ़ा कर देता तथा प्रकुपित उदरवात को शमन कर जठराग्नि को प्रदीप्त करता है।…

Mahamanjitharisth

Mahamanjitharisth

महामञ्जिष्ठादारिष्ट गुण और उपयोग (Uses and Benefits)  : इस औषधि के उपयोग से कुठ रोग, वातरक्त, अर्दित, मेदोवृद्धि, शलीपद (फीलपांव) रोग शीघ्र नष्ठ होते हैं। इसके अतिरिक्त रक्तदुष्टिजन्य त्वचारोग, खाज-खुजली, फोड़े-फुन्सी आदि में अकेला या गन्धक रसायन अथवा शुद्ध गन्धक या रसमाणिक्य या अन्य किसी रक्‍तदुष्टिनाशक औषधि के अनुपान के साथ इसके प्रयोग से अच्छा लाभ…

Bhringrajasava

Bhringrajasava

भूङ्गराजासव गुण और उपयोग (Uses and Benefits)  : इस आसव के उपयोग से सभी प्रकार के धातु-क्षय और राजयक्ष्मा रोग नष्ट होते हैं। पांचों प्रकार की खाँसी और कृशता को नष्ट करता है। यह बलकारक और कामोदरीपक है। इसके सेवन से बन्ध्यत्व दूर हो स्त्री सन्तानवती होती है। धातुक्षय के रोगी को इसका प्रयोग कराने से,…

Vidangasava / Vidangarist

Vidangasava / Vidangarist

विडंगासव ( विडंगारिष्ट ) गुण और उपयोग (Uses and Benefits)  : इसके उपयोग से उदर कृमि, विद्रधि, गुल्म, उरूस्तम्भ, अश्मरी, प्रमेह, प्रत्यष्ठीला, भगन्दर, गण्डमाला, हनुस्तम्भ-इन रोगों को यह शीघ्र नष्ट करता है। मात्रा और अनुपान  (Dose and Anupan)  :-1 तोला से 2 तोला तक, दोनों समय भोजन के बाद, समान भाग जल मिलाकर दें। मुख्य सामग्री…