Patarangasava

पत्रांगासव
गुण और उपयोग (Uses and Benefits) :
- इसके सेवन से रक्त-श्वेत प्रदर, दर्द के साथ रज निकलना, ज्वर, पाण्डु, सूजन, अरुचि, अग्निमान्द्य, गर्भाशय के अवयवों की शिथिलता, कमजोरी, दुष्टार्त आदि रोग नष्ट होते हैं।
- इस आसव का प्रभाव स्त्रीयों के कटि (कमर) प्रदेश के अवयवों पर विशेष होता है।
- यह स्त्रीयों के कटि-प्रदेश के अवयवों पर तो काम करता ही है, साथ ही उन अवयवों में किसी के विकार न हों, इसे भी यह रोकता है। अतएव प्रत्येक स्त्री को लगातार एक-दो महीने अथवा साल भर में इसकी 2-3 बोतल अवश्य पीना चाहिए।
- इससे स्त्रीयों की तन्दुरुस्ती तथा सुन्दरता ठीक बनी रहती है।
- स्त्रीयों की तन्दुरुस्ती या सुन्दरता कटि-प्रदेश पर ही निर्भर है।
- कटि-प्रदेश जितना नीरोग और स्वस्थ रहेगा, तन्दुरुस्ती भी उतनी ही अच्छी बनी रहेगी। इस बात का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए!
- यह आसव गर्भाशय को भी बलवान बनाता है।
- गर्भ नहीं रहना अथवा गर्भ रह कर असमय में भी स्राव या पात हो जाना, मरा हुआ बच्चा पैदा होना, सन्तान होते ही मर जाना, अथवा रोगी सन्तान होना, आदि-आदि उपद्रवों में भी इसका लगातार कुछ रोज तक बराबर सेवन करते रहने से अच्छा फायदा होता है। साथ में चन्द्रप्रभाबटी का भी उपयोग करने से विशेष लाभ होता है।
मात्रा और अनुपान (Dose and Anupan) :- 1 से 2 तोला, बराबर जल मिलाकर खाना खाने के बाद दें।
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि ( Main Ingredients and Method of Preparation): – पतंगकाष्ठ, खैरसार, वासक मूल, सेमल के फूल, खरेंटी, शुद्ध भिलावा, सारिवा दोनों (अनन्तमूल और श्यामलता), गुड़हल की कली, आम की गुठली की मींगी, दारु-हल्दी, चिरायता, पोस्त के डोडे, जीरा सफेद, लौहचूर्णं या भस्म, रसोत, बेलगिरि, भांगरा, दालचीनी, केसर, लौंग–प्रत्येक 4-4 तोला लेकर मोटा चूर्ण बनावें। पश्चात् 2 सेर 8 तोला पानी में मुनकका 7 सेर, धाय के फूल 64 तोला, खाँड 5 सेर, शहद (अभाव में पुराना गुड़) 2 सेर और उपरोक्त दवाओं का चूर्ण अच्छी तरह घोलकर उसे चिकने पात्र में भरकर सन्धान कर दें तथा एक मास पश्चात् छानकर रख लें। भै.र.
इस योग में चीनी का परिमाण कम होनें से खट्टापन होता है, अतः चीनी दुगुनी (10 सेर) मिलाने से ठीक बनता है।