Narikelasava

नारिकेलासव
गुण और उपयोग (Uses and Benefits) :
- यह आसव पौष्टिक, बल-वीर्य बढ़ाने वाला और बाजीकरण है।
- इसके सेवन से कामशक्ति की वृद्धि होती है।
- धानुक्षीणता , छोटी आयु में अप्राकृतिक ढंग से शुक्र का नाश करने या अधिक स्वप्न दोष अथवा और भी किसी कारण से वीर्य पतला हो गया हो, वीर्य-वाहिनी नाड़ियाँ शिथिल होकर वीर्य धारण करने में असमर्थ हो गयी हों, अथवा इन कारणों से स्रीप्रसङ्घ का विचार होते ही वीर्यस्राव हो जाय या नामर्दी हो गयी हो, तो ऐसी हालत में इस आसव का सेवन करने से अच्छा लाभ होता । इससे वीर्य-विकार दूर हो, वीर्य गाढ़ा बन जाता तथा शरीर पुष्ट और बलवान हो जाता है।
मात्रा और अनुपान (Dose and Anupan) :- 1 से 2 तोला, बराबर जल मिलाकर प्रातः-सायं दें।
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि ( Main Ingredients and Method of Preparation): – नारियल का पानी 25 सेर 8 तोला, ईख का रस 2 सेर 4 तोला, सेमल का क्वाथ 728 तोला, दशमूल-फ्वाथ 28 तोला और दालचीनी, इलायची, तेजपात, नागकेशर का जौकुट चूर्ण तथा धाय के फूल–प्रत्येक 64-64 तोला, कस्तूरी 3 माशे और केशर 3 माशा, तगर, सफेद चन्दन और लौंग का चूर्ण 4-4 तोला–सबको एकत्र मिला कर घृत के चिकने पात्र (मटका) में भरकर सन्धान करके मास तक छोड़ दें, बाद में छानकर रख लें।
वक्तव्य : दालचीनी, इलायची, तेजपात, नागकेशर–सबको समान भाग मिलाकर 64 तोला लें। द्रवपदार्थों को द्रवद्वैगुण्य परिभाषा के अनुसार द्विगुण किया गया है। केसर और कस्तूरी पहले न डालकर, आसव तैयार हो जाने के बाद रेक्टीफाइड स्पिरिट में घोंटकर डालें।