Visham Jwarantak Loh

विषम ज्वरान्तक लौह ( पुटपक्व )
गुण और उपयोग (Uses and Benefits) :-
- इस रसायन का सेवन करने से समस्त प्रकार के कठिन जीर्ण ज्वर रोग नष्ट होते हैं।
- विशेषतः विषम ज्वर में इसके प्रयोग से वरदान सदृश लाभ होता है। इसके अतिरिक्त वातज, पित्तज और कफोत्थ आठौं प्रकार कै ज्वर तथा एकतरा, तिजारी, चौथिया आदि पारी के सभी ज्वरों को नष्ट करता है और प्लीहा-विकृति, वृद्धि, साध्य-असाध्य सभी प्रकार के गुल्म, सन्तत-सततादि विषम ज्वर इसके प्रयोग से नष्ट होते हैं।
- कामला, पाण्डुरोग, .शोथरोग, प्रमेह, अरुचि, संग्रहणी रोग, आमदोष एवं आमदोष से होने वाले उपद्रवों को शीपघ्र नष्ट करता है, तथा कास, श्वास, मूत्रकृच्छु, अतिसार इन रोगों को निःसन्देह नष्ट करत। है।
- जठराग्नि को प्रदीप्त कर बल की वृद्धि करता हैं एवं वर्ण को सुन्दर बनाता है और मन को प्रसन्न रखता है।
मात्रा और अनुपान (Dose and Anupan) :- आधी से 1 रत्ती तक सुबह-शाम पीपल चूर्ण, भुनी हींग, सेंधा नमक के चूर्ण के साथ
मिलाकर मधु से दें, ऊपर से गरम जल पिलावें या रोगानुसार अनुपान के साथ दें।
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि ( Main Ingredients and Method of Preparation): – हिंगुलोत्थपारद 1 तोला, शुद्ध गन्धक 2 तोला लेकर दोनों को खरल में डाल सूक्ष्म कज्जली बनाकर उस कज्जली को पर्पटी-विधान से पर्पटी बनावें। पश्चात् उस पर्पटी को खरल में डालकर सूक्ष्म मर्दन करें। फिर उसमें स्वर्ण वर्क या भस्म 3 माशे, लौह भस्म 2 तोला, ताम्र भस्म 2 तोला, अभ्रक भस्म 2 तोला, वंग भस्म 6 माशे, शुद्ध स्वर्णगैरिक 6 ` माशे, प्रवाल भस्म 6 माशे, मोती भस्म 3 माशें, शंख भस्म 3 माशे, शुक्ति भस्म 3 माशे मिलाकर उपरोक्त कज्जली, स्वर्ण-वर्क आदि समस्त द्रव्य एकत्र मिला, मर्दन करें और बड़ी सीपों के अन्दर भरकर, उनका सन्धिरोध करके लधुएुट में पाक करें, स्वांगशीतल होने पर औषधि को निकालकर, सूक्ष्म मर्दन करके रखें।