Vidangadi Loh

विडंगादि लौह
गुण और उपयोग (Uses and Benefits) :-
- इसके सेवन से उदर-कृमि, अर्श-अरुचि, मन्दाग्नि, विसूचिका (हैजा), शोथ, शूल, ज्वर, हिक्का, कास और श्वास का नाश होता है।
- कृमि रोग में इसका विशेषतया उपयोग किया जाता है।
- कृमिरोग में लम्बे, गोल, मूत्राकार, चपटे आदि अनेक प्रकार के कृमि आंतों में चिपके रहते हैं, जो अन्त्रस्थ आहार ट्रव्यों के रस का चूषण करते हैं। उसके अभाव में रसरक्तादि का भी चूषण करते हैं। इससे कब्ज, ज्वर, हल्लास आदि अनेक उपद्रव हो जाते हैं। आजकल यह रोग बहुत व्यापक है एवं इसी के कारण लोगों को कितने ही विकारों का कष्ट भोगना पड़ता है। बच्चों को कृमिरोग विशेष रूप से होता है। इस रोग में विडङ्गादि लौह, कृमिकुठार रस, कृमि घातिनी बटी के कुछ काल तक नियमित प्रयोग से बड़ा उत्तम लाभ होता है। बीच-बीच में मृदुविरेचन औषधि लेकर पेट को साफ भी करते रहना चाहिए ताकि मरे हुए कृमि बाहर निकलते रहें।
मात्रा और अनुपान (Dose and Anupan) :- 4-6 रत्ती सुबह-शाम खुरासानी अजवायन के क्वाथ या प्याज के रस अथवा गर्म जल के साथ देँ।
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि ( Main Ingredients and Method of Preparation): – शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, काली मिर्च, जायफल, लौंग, पीपल, शुद्ध हरताल, सोंठ, सुहागा 1- 1 तोला, लौहभस्म 9 तोला और वायविडंग चूर्ण 8 तोला लें। प्रथम पारा-गन्धक की कज्जजी बना, उसमें अन्य औषधियों का बारीक चूर्ण मिलाकर खरल दरके रख लें। र. सा. सं.