Hinguadi Churan

हिंग्वादि चूर्ण
गुण और उपयोग (Uses and Benifits ) –
- इसके सेवन से पार्श्वशूल, हृदयशूल,बस्तिशूल, वात-कफज गुल्म, अफरा, ग्रहणी, अरुचि,छाती की धड़कन,श्वास, कास और स्वरभंग अर्थात आवाज बैठ जाना आदि रोग दूर हाते हँ।
- यह दीपक, पाचक एवं रोचक हे तथा उत्तम वातशामक और शूलघ्न है यह चूर्ण वात-दोष की विकृति से पैदा हुए अजीणं, पेट फूलना, पेट में दर्द होना, दस्त पतला होना आदि रोगों में भी बहुत लाभ करता है।
- इस चूर्ण को बिजौरा निम्बु के रस की भावना देकर रखलें अथवा बिजोरा निम्ब रस मे घोंटकर ३-३ रत्ती की गालियाँ बना सुखा कर रख लें। इन गोलियों को हिंग्वादि चूणं गुटिका या बटी कहते हें। ये दोनों प्रकार उत्तम रोचक एवं विशेष उपयागी हैं।
मात्रा और अनुपान (Dose and Anupan) —: २ माशा से ८ माशा तक प्रात:-सायं गर्म जल या छाछ के साथ दें। पुराने कुमार्यांसव, लोहासव, द्राक्षासव, मृतसंजावनी के साथ भी यह सेवन करने से लाभ करता हैं।
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि ( Main Ingredients and Method of Preparation); शुद्ध हींग, सोंठ, मिर्च, पीपल, पाठा, हपुपा, हर्रे, कचूर, अजमोद, बनतुलसी, तिन्तडीक, अम्लवेत, अनारदाना, पोहकरमूल (अभाव मे कूठ) धनियाँ, जीरा, चित्रकमूल, बच, यवक्षार, सज्जीखार,पाँचों नमक ओर चव्य-प्रत्यक दवा सम भाग लेकर चूर्ण बनावें।