Balyakritari Loh
बालयकृदरि लौह
गुण और उपयोग (Uses and Benefits) :-
- यह लौह बच्चे के कष्टसाध्य यकृत्-प्लीहा ज्वर, शोथ, विबन्ध (कब्जियत), पाण्डु, खाँसी, मुखरोग, मुख के छाले और उदर रोगों को नष्ट करता है।
- बाल यकृत् विकृत दूध पीने, छोटी अवस्था से ही अन्नादि खिलाने अथवा बचपन में मिश्री, चीनी, लड्डू आदि विशेषतया खाने से बालकों का यकृत् बढ़ जाता है। बच्चों को यह रोग बहुत सरलता से तथा जल्दी हो जाता है, क्योंकि बाल्यावस्था में बच्चों का यकृत् बहुत नरम रहता है। अतएव थोड़ा-सा भी अपच हो जाने पर उसमें तुरन्त विकृति या रोग उत्पन्न हो जाते हैं। फलतः बच्चा सूखने लगता है। रक्त की कमी से हाथ-पाँव सूखने लग जाते हैं तथा बच्चे का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। जिधर यकृत् रहता है उसी के बल जमीन पर बच्चे को लेटने की इच्छा होती है। अवसर पाकर वह जमीन पर लेट भी जाता है। पेट आगे को निकला हुआ मालूम पड़ता है, ज्वर बराबर रहता है, दस्त पतले होते हैं, ऐसी अवस्था में बालयकृदरि लौह देने से बहुत लाभ होता है।
- इससे यकृत् वृद्धि अथवा यकृत् की विकृति यथाशीघ्र ही रुक जाती है और इसमें रससिन्दूर, अभ्रक और लौह भस्म के मिश्रण से यह रसायन बच्चों के लिये अमृत कें समान गुणदायक बन जाता है।
- कफ-दोष या ज्वरादिक दोष भी इसके सेवन करने से दूर हो जाते हैं और बच्चा बहुत शीघ्र हष्ट-पुष्ट हो जाता है।
मात्रा और अनुपान 1- 1 गोली सुबह-शाम. मधु (शहद) अथवा माँ के दूध के साथ दें।
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि ( Main Ingredients and Method of Preparation): – सहस्रपुटी अभ्रकभस्म, लौहभस्म, पारद-भस्म (रससिन्दूर), जम्बीरी नींबू के बीज, अतीस सरफोंका की जड़, लाल चन्दन, पाषाणभेद प्रत्येक, समान भाग लेकर, महीन चूर्ण बना, गिलोय (गुर्च) के रस में घोटकर 2-2 चावल की गोलियाँ बना, सुखा कर रख लें। .
–आ. वे. वि.
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