Kaskandan Avleh
कासकण्डनावलेह
गुण और उपयोग (Uses and Benefits) :-
- इसके सेवन से पुरानी खाँसी जैसे-जो कफ बराबर बनता और गिरता रहता है, ऐसे कफ को निकलने में देर नहीं होती और उसमें किसी तरह की दुर्गन्ध भी नहीं आती, परन्तु जो कफ पुराना हो छाती में बैठ जाता है, खाँसने पर छाती में दर्द होने लगता है, ज्यादा खाँसी होने पर कफ का दुर्गन्धयुक्त टुकड़ा निकलता है, रोगी खाँसी बन्द होने के बाद हाँफने लगता है, रोगी को मन्द-मन्द ज्वर, मन्दाग्नि तथा किसी काम में मन न लगना, किसी से बात करने की भी इच्छा न होना, शारीर में रकत का अभाव हो जाना आदि उपद्रव उत्पन्न हो जाते हैं। ऐसे रोगों की चिकित्सा करने में वैद्य भी घबड़ा जाते हैं।
- कभी-कभी रोगी की खाँसी कुछ दब भी जाती है, परन्तु अपथ्यादि सेवन से पुनः उत्पन्न हो जाती है। ऐसी अवस्था में इस अवलेह से काफी लाभ होता है, क्योंकि इसके सेवन से छाती में बैठा हुआ कफ पिघल कर बहुत सरलता से बाहर निकल आता है तथा नवीन विकृत कफ भी नहीं बनने देता है।
मात्रा और अनुपान (Dose and Anupan) :- 2 से 4 माशे की मात्रा में शहद या गरम पानी के साथ प्रातः-सायं सेवन करें।
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि ( Main Ingredients and Method of Preparation): – बकरी के 5 सेर मूत्र को मन्दाग्नि पर पका कर गुड़पाक के सपान गाढ़ा करके, उसमें बहेड़े का चूर्ण 8 तोला, पीपल का चूर्ण 4 तोला, लौह भस्म 4 तोला, कटेली के फलों का चूर्ण 8 तोला मिला कर सुरक्षित पात्र में रख लें। वृ. यो. त.
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