Aptantrak(Hysteria)Gutika

अपतन्त्रकारि बटी (हिस्टीरियाहर बटी)
गुण और उपयोग (Uses and Benefits )–
- अपतन्त्रकारि (हिस्टीरियाहर) बटी का प्रभाव वातवाहिनी नाड़ी और मस्तिष्क पर विशेष होता है।अपतन्त्रक (हिस्टीरिया)-आयुर्वेदीय मतानुसार रूक्षादि कारणों से प्रकूपित वायु अपने स्थान को छोड़ कर हृदय में जा कर पीड़ा उत्पन्न करता है। इसमें मस्तक और कनपटी में पीड़ा होती है, शरीर को धनुष के समान नवा कर मूर्च्छित (बेहोश) कर देता है। रोगी कष्ट के साथ साँस लेता, नेत्र पथरा जाते या बन्द हो जाते हैं तथा कबूतर के समान कूजने की-सी आवाज निकलती है।
- यह रोग प्रायः युवावस्थावाली लड़कियों को काम-वासना की अतृप्ति के कारण अथवा मासिक-धर्म साफ न से या मानसिक अभिघात, चिन्ता, शोक, क्रोध, भय आदि कारणों स वात प्रकूपित हो कर होता है। ठंण्डे [मिजाजवाली लड़कियों की अपेक्षा गरम मिजाजवाली लड़कियों को ही अधिक होता है। ३० वर्ष से ऊपर की उम्रवाली स्त्रियों में यह रोग बहुत कम पाया जाता है।
- कई रोगियों को बेहोशी का दौरा २४ घण्टे तक निरन्तर होते देखा गया है। बहुतों को तो बार-बार और जल्दी दौरा होता है। ऐसी दशा में रोगी का कुछ होश आते ही तुरन्त मूर्छा हो जाती है बेहोशी की हालत में दाँती बंध जाती, शरीर अकड़ जाता तथा रोगी हाथ-पैर पटकने लगता है। इसमें अपतन्त्रकारि बटी के प्रयोग से बहत शीघ्र फायदा होता है। यह बटी वायुनाशक होते हुए मनोवाहिनी शिरा को भी चैतन्य-शक्ति प्रदान करती है। यदि निरन्तर नियमपूर्वक २४ दिन तक इस गोली का सेवन कराया जाय, तो फिर हिस्टीरिया आने का कभी सन्देह ही नहीं रहता है।
मात्रा और अनुपान (Dose and Anupan)-२ गोली एक बार में देकर ऊपर में मांस्यादि क्वाथ पिलावें। इसी प्रकार दिन में ३-४ बार आवश्यकतानुसार दें।
घी में सेंकी हुई हींग १ तोला, कपूर १ तोला, गांजा आधा तोला, खुरासानी अजवायन के बीज या पत्ती दो तोला, तगर (यूनानी आसारून) २ तोला, सबका कपड़छन चर्ण कर जटामांसी के फाण्ट में पीस कर २-२ रत्ती की गोलियाँ बना, छाया में सुखाकर रख लें। –सि. यो. सं. से किञ्चित् परिवर्तित