Kanakasava

कनकासव
गुण और उपयोग (Uses and Benefits) :-
- इसके सेवन से श्वास, कास, यक्ष्मा, उरःक्षत, क्षय, पुराना ज्वर, रक्त-पित्त आदि शान्त हो जाते हैं। |
- कास-श्वास की उग्रावस्था में इसका उपयोग अधिकतर किया जाता है, क्योंकि श्वासनलिका की श्लैष्मिक त्वचा को शिथिल कर के यह दमे की पीड़ा को दूर करता है। इसीलिए श्वासनलिका मे संकोच-विकास-प्रधान रोग में इसका उपयोग विशेषतया सफल होता है।
- शवासनली की सूजन, दमा और फेफड़ों के रोगों में इसका बहुत उपयोग किया जाता है।
- इससे कफ ढीला होकर गिरने लगता है
- श्वासनली की संकुचित होने की शक्ति कम हो जाती है और दमे का वेग बन्द हो जाता है।
मात्रा और अनुपान (Dose and Anupan) :- 1 से 2 तोला, बराबर जल मिलाकर भोजन के बाद दोनों समय दें।
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि ( Main Ingredients and Method of Preparation): – शाखा, जड़, पत्ते और फल सहित सूखे धतूरे को कूटकर ।6 तोला (गीला हो तो 32 तोला) लें, वासा की जड़ १6 तोला, मुलेठी, पीपल, छोटी कटेली, नागकेशर, सोंठ, भारङ्गी और तालीस पत्र–प्रत्येक 8-8 तोला लेकर मोटा चूर्ण कर लें। धाय के फूल 64 तोला मुनक्का 80 तोला लें।
सन्धान : उपरोक्त चीजों को पात्र में रखें। फिर 25 सेर 8 तोला जल में देशी खांड या चीनी १0 सेर, मधु (अभाव में पुराना गुड़) 2 सेर घोलकर सन्धान कर दें। सन्धान क्रिया चालू होने पर उपरोक्त चूर्णादि मिला दें। एक मास बाद तैयार होने पर छान कर रख लें।
—भै. र. से किंचित् परिवर्तित वक्तव्य । भै० र० मूल पाठानुसार चीनी का परिमाण कम रहने से खट्टा बनता है, अतः चीनी द्विगुण की गयी है।