Jyanti Vati
जयन्ती बटी:
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि :
शुद्ध बच्छनाग, पाठा, असगन्ध, बच, तालीसपत्र, काली मिर्च, पीपल और नीम की छाल का समान भाग चूर्ण लेकर सबको बकरी के मूत्र में घोंट कर चने के बराबर (2-2 रत्ती की गोलियाँ) बना छाया में सुखाकर रख लें। “र्, सा. सं.
मात्रा और अनुपान :
१- गोली सुबह-शाम
गुण और उपयोग:
- पित्त ज्वर में गो-दुग्ध के साथ दें।
- सन्निपात ज्वर में इस बटी को काली मिर्च के चूर्ण और शहद के साथ दें।
- विषमज्वर में घृत के साथ और सब प्रकार के ज्वरों में त्रिकटु (सोंठ, पीपल, मिर्च) चूर्ण के साथ दें।
- ज्वस्युक्त रक्त-पित्त में चन्दन के काढ़े के साथ दें।
- खाँसी में–शहद के साथ, पाण्डु और शोथ में दूध के साथ तथा पंथरी और भयंकर मूत्रकृच्छू में चावलों के पानी के साथ दें। कुष्ठ में–गो-मूत्र के साथ देना चाहिए।
- प्रमेंहमें केतकी की जड़ के साथ दें। अथवा लोध, मोथा, हर और जायफल के क्वाथ में शहद डाल कर पिलाने से भी प्रमेह रोग नष्ट होता है।
- त्रिदोषजगुल्म में आनन्दभैरव रस या जयन्ती बटी”को गुड़ में मिला कर गर्म जल के साथ देने से त्रिदोषजगुल्म नष्ट होता है।
- भगन्दर रोग में सोंठ के साथ, ग्रहणी में छाछ के साथ और त्रिदोषज रक्त-पित्त में शीतल जल के साथ प्रयोग करना चाहिए।