Ekvinshati Guggulu(एकविंशति गुग्गुलु )
एकविंशति गुग्गुलु
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि :
चित्रक, त्रिफला, त्रिकटु, काला जीरा, कलौंजी, वच, सेन्धा नमक, अतीस, कूठ, चव्य, इलायची, यवक्षार, वायविडंग, अजमोदा, नागरमोथा, देवदारु, प्रत्येक समान भाग गुग्गुलु सबके बराबर लेकर प्रथम काछौँषधियों का चूर्ण कर गुग्गुलु के साथ कूट, घी मिला कर 4-4 रत्ती की गोलियाँ बना लें। बृ. नि. र.
मात्रा और अनुपान: 2-4 गोली सुबह-शाम नीम की छाल के क्वाथ के साथ या गर्म जल के साथ दें।
गुण और उपयोग:
- इसके सेवंन से सब प्रकार के कुष्ठ, कृमि, दाद, घाव, संग्रहणी, विकार, बवासीर, मुखरोग आदि व्याधियाँ नष्ट होती हैं।
- इसका उपयोग त्वचा और रक्त के विकारों में विशेषतया किया जाता है।
- प्रकुपित वात के कारण जो “रक्त दूषित होता है, उस रक्त का रङ्ग कुछ कालिमायुक्त हो जाता है और त्वचा भी रूक्ष हो जाती है। कहीं-कहीं खुजली भी हो जाती है। फिर चर्मरोग जैसे–दाद, घाव (फोड़े-फुन्सियाँ) खुजली आदि उपद्रव हो जाते हैं, और रक्त विकृत होकर कुष्ठादि उत्पन्न: कर देता है। ऐसी दशा में “एकविंशति गुग्गुलु” के उपयोग से बहुत फायदा होता है।
- यह प्रकुपित वायु को तो शान्त करता ही है, साथ ही दूषित रक्त की विकृति को भी दूर कर, शुद्ध रक्त बनाता है। अतएव उपरोक्त रोगों में यह गुग्गुलु बहुत लाभ करता है। ।