Yakritplihari Loh

यकृत्-प्लीहारि लौह
गुण और उपयोग (Uses and Benefits) :-
- इसके सेवन से पुराने यकृत्-प्लीहा के रोग, उदर रोग, पेट फूलना, ज्वर, पाण्डु, कामला, शोथ हलीमक, अग्निमान्द्य और अरुचि का नाश होता है।
- यकृत् रोग में इसका विशेष रूप से उपयोग किया जाता है। शरीर में यकृत्-जैसा दूसरा उपयोगी यंत्र नहीं है। यकृत्-रोग शुरू होते ही जाड़ा देकर या बिना जाड़ा लगे भी बुखार आने लगता है। कुछ दिनों के बाद बुखार तो शान्त हो जाता है, किन्तु यकृत् रोग बना ही रह जाता है। क्रमशः रोग पुराना होने पर यकृत् कठोर और पहले की अपेक्षा बड़ा भी हो जाता है। यकृत्-स्थान को दबाने से दर्द होना, परिश्रम करने से यकृत् में दर्द॑ होना, साथ ही मन्द-मन्द ज्वर बना रहना, आंव सहित मल आना, मुंह का स्वाद खराब हो जाना आदि लक्षण होते हैं। कब्जियत रहना और पेट में वायु भरना इस रोग के खास लक्षण हैं। जब रोग भयानक रूप धारण कर लेता है, तब यकृत् में फोड़ा होकर, यकृत् संकोचन हो, रोगी की मृत्यु तक भी हो जाती है। इस रोग की उत्पत्ति पुराने मलेरिया-बुखार आदि से होती है। आजकल शहरों में खान-पान की अनियमितता भी इस रोग की उत्पत्ति का प्रधान कारण है।
- दो-तीन वर्ष से लेकर 5-7 वर्ष तक की आयु वाले बच्चे को भी यह बीमारी हो जाती है, जिससे रोगी (बच्चे) के हाथ-पैर सूजने लगते हैं। शरीर में खून कम हो जाता और आँखें सफेद तथा रक्तहीन हो जाती हैं। ऐसी अवस्था में यकृत् प्लीहारि लौह देने से बहुत फायदा होता है, क्योंकि यकृत् रोग में सबसे पहले मन्दाग्नि हो जाती है। कारण यह है कि यकृत् से पित्त निकल कर अन्न पचाने का जो काम होता है, वह कार्य यकृत् में विकार होने से बन्द हो जाता है–अतएव, मन्दाग्नि हो जाती है। उस विकार को दूर करने के लिए यह बहुत उत्तम है।
- इसके सेवन से और भी उपद्रव दूर-हो जाते हैं।
मात्रा और अनुपान (Dose and Anupan) :- 1- 1 गोली सुबह-शाम गो-मूत्र या तक्र के साथ दें।
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि ( Main Ingredients and Method of Preparation): – हिंगुलोत्थ पारद, गन्धक, लौह भस्म और अप्रक भस्म – भाग, ताम्र भस्म 2 भाग, शुद्ध मैनसिल, हल्दी का चूर्ण, शुद्ध जमालगोटा, सुहागे की खील और शुद्ध शिलाजीत 7-7 भाग लेकर सबको एकत्र मिलावें । फिर उसे दन्तीमूल, निसोथ, चित्रक, सम्भालू, त्रिकुटा, अदरक और भाँगरा इसके रस की पृथक्-पृथक् एक-एक भावना देकर दो-दो रत्ती की गोलियाँ | —भै. र.