What is Langhan…. in Ayurveda and it’s benifits?

Post Views: 59 देवदार्वाद्यरिष्ट गुण और उपयोग (Uses and Benefits) : इस अरिष्ट का उपयोग करने से सब प्रकार के कठिन प्रमेह, वात रोग, ग्रहणी, अर्श मूत्रकृच्छू, दद्रु, कुष्ठ इन विकारों को यह नष्ट करता है। इसके अतिरिक्त उपदंश, मूत्रकृच्छ, प्रदर, गर्भाशय के दोष, कण्डू इत्यादि रोग नष्ट होते हैँ। यह औषध उत्तम रक्तशोधक और मूत्र-दोष-नाशक…
Post Views: 115 कामेश्वर मोदक गुण और उपयोग (Uses and Benefits) :- इसके सेवन से वीर्य-वृद्धि तथा वीर्यस्तम्भन होता है। यह मोदक वाजीकरण और कामाग्निसंदीपन है। निर्बल पुरुषों को बल देता तथा .उरःक्षत, राजयक्ष्मा, कास, श्वास, अतिसार, अर्श, ग्रहणी, प्रमेह तथा श्लेष्मप्रकोप आदि अनेक व्याधियों को नष्ट करता है। यह बुद्धिवर्धक भी है। मात्रा और…
Post Views: 75 कनकारिष्ट ( रक्तशोधक ) गुण और उपयोग (Uses and Benefits) :- इसे प्रातःकाल बिना कुछ खाये ही सेवन करगे से पुराना कुष्ठ एक मास में शान्त हो जाता है। यह अरिष्ट रक्त-शोधक है। अतएव इसका प्रयोग रक्त-विकार में करने से विशेष लाभ होता है। प्रमेहपीड़िका, शंरीर में छोटी-छोटी फुन्सियाँ हो जाना, खून की…
Post Views: 179 बदहजमी का कारण(Main causes of indigestion) 1.विषमाशन: कभी ज्यादा कभी कम.या असमय में खाना “विषमाशन” कहलाता है। 2.अध्यशन: खाये हए पदार्थ के बिना हजम हुए ही पुनः खा लेना “अध्यशन” कहलाता है। 3.समशन: पथ्यापथ्यकारक (हित-अहितँ करनेवाले) पदाथौँ को एक साथ मिला कर खाना ‘समशन’ कहलाता है। ये विषमाशन, अध्यशन और समशन अजीर्ण…
Post Views: 54 द्राक्षासव गुण और उपयोग (Uses and Benefits) : इसके सेवन से ग्रहणी, बवासीर, क्षय, दमा, खाँसी, काली खाँसी और गले के रोग, मस्तक रोग, नेत्र रोग, रक्तदोष, कुष्ठ, कृमि, पाण्डु, कामला, दुर्बलता, कमजोरी, आमज्वर आदि नष्ट हो जाते हैं। यह सौम्य, पौष्टिक तथा बलवीर्यवर्द्धक है। मात्रा और अनुपान (Dose and Anupan) :- 2 से…
Post Views: 94 जातिफलादि बटी ( स्तम्भक ) मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि : अकरकरा । तोला, सांठ तोला, शीतल चीनी । तोला, केशर । तोला, पीपल १ तोला, जायफल । तोला, लौंग १ तोला, सफेद चन्दन । तोला, शुद्ध अफीम 4 तोला लेकर प्रथम चूर्ण करने योग्य द्रव्यों का सूक्ष्म कपड़छन चूर्ण करें, पश्चात्…