Tuvrak Tel – Chalmogra oil

तुबरक तैल ( चालमोंगरा तैल )
गुण और उपयोग (Uses and Benefits) :
- सबेरे-शाम दिन में दो बार यह तैल पाँच बूँद की मात्रा से आरम्भ करें और प्रति चौथे दिन पाँच बूँद की मात्रा बढ़ाकर 4 तोला तक गाय के ताजे मक्खन या दूध की मलाई में मिलाकर दें।
- रोगी जितनी मात्रा सहन कर सके, उतनी बढ़वें। जब मात्रा सहन नहीं होती है, तब जी मिचलाने लगता है तथा वमन भी होती है। ऐसी अवस्था उत्पन्न होने पर तैल की मात्रा घटा दें। स्नान करने के बाद इस तैल की मालिश करावें, रोगी जितनी मात्रा सहन कर सके, उतनी मात्रा में 6 माह तक इसका सेवन करावें।
- सब प्रकार के कुष्ठों में इस तैल के खाने और लगाने से बहुत लाभ होता है।
- इस तेल में कपड़ा भिंगोकर व्रण पर रखने से व्रण भर जाता है।
- खुजली आदि में लगाने से लाभ होता है।
- कुष्ठ रोग की यह सुप्रसिद्ध औषधि है।
- आजकल कुष्ठ का प्रसार अधिक होने के कारण इसका उपयोग भी बहुत बढ़ रहा है और पर्याप्त सफलता भी मिलती है।
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि ( Main Ingredients and Method of Preparation): – भारतवर्ष के पश्चिम समुद्र के तट पर कोंकण से त्रावणकोरं तक तुबरक के वृक्ष होते हैं। इसके फल को मराठी में “कडूकवीठ’” कहते हैं। वर्षा-ऋतु के आरम्भ में जब इस वृक्ष के फल पककर तैयार हो जायें, तब लाकर तौलकर उसके अन्दर का मगज निकाल, सुखा करके कोल्हू में पेरवाकर, तैल निकाल लें। अथवा मगज का चूर्णकर जल के साथ पकावें। जब तैल पानी के ऊपर आ जाय, तब धीरे-धीरे उसमें से तैल निकाल लें। फिर इस तैल को मन्द आँच पर इतना पकावें कि लगभग सारा पानी जलकर तैल मात्र शेष रह जाय, फिर उतार कषड़े से छानकर रख लें। इस तैल कौं खैर की छाल के तिगुने क्वाथ में पुनः पकावें जब क्वाथ का पानी जल जाय और मात्र शेष रहे, तब छानकर बोतलों में रख लें। इन बोतलों को कण्डे के चूर्ण में तीन दिन तक गाड़ कर रखने के बाद तैल काम में लावें।
वक्तव्य : तुबरक तैल को ही आजकल चालमोंगरा तैल कहते हैं। इसी नाम से यह तैल विक्रेताओं के यहाँ बना हुआ तैयार मिल जाता है।