Triushanadi Loh

त्रिर्यूषणादि लौह
गुण और उपयोग (Uses and Benefits) :-
- इस लौह के सेवन करने से स्थूलता (मोटापन), प्रमेह और कुष्ठरोग नष्ट होता हैं तथा बल-वर्ण और जठराग्नि की वृद्धि होती है।
- यह वायुशामक तथा वातविकार को दूर करने वाला है।
- स्थूलता में स्निग्ध (चिकना), मधुर (कफवर्द्धक) पदार्थों के सेवन करने से शरीर में चर्षी बढ़ जाती हैं। इसकी वृद्धि स्त्रियों में अधिक होती है, जिससे उन्हें सन्तानादि होना भी बन्द हो जाता है, क्योंकि चर्षी ज्यादा बढ़ जाने से गर्भाशय का मुँह बन्द हो जाता है। फिर गर्भधारण ही नहीं होता। पुरुष में यदि बढ़ जाती है तो पेट, चूतड़ आदि मांसल अंगों की वृद्धि हो जाती है, जांघ मोटी हो जाती है, जिससे चलने में तकलीफ होती है। किसी-किसी में तो मोटापन इतना बढ़ जाता है कि वह अपने हाथ से आबदस्तं (शौच) भी नहीं कर पाता हैं। जिसकी चर्बी बढ़ी रहती है, वह मनुष्य भीतर से कमजोर रहता है। थोड़ा ही परिश्रम करने पर हाँफने लगता है। ज्यादा मोटा होना भी रोग है। अतः मोटापन को दूर करने के लिए त्र्यूषणोदि लौह का उपयोग करना चाहिये। इससे बादी छंटने लग जाती है और चर्बी विशेष न बन कर रक्त ही बनने लगता है तथा बढ़ी हुई चरबी भी धीरे-धीरे सूख जाती हैं। परन्तु इस दवा के सेवन-काल में जौ और चना, रूखी रोटी मात्र ही खाने को दें। भात या पूड़ी, दही, दूध, शक्कर आदि स्निग्ध और कफवर्द्क पदार्थ बिलकुल बन्द कर दें।
- वक्तव्य कुछ ग्रन्थों में इस योग के पाठ में त्रिफला के स्थान पर विजया शाब्द है, जिसका अर्थ कई लोग हरीतकी और कुछ लोग भाँग भी करते हैं। किन्तु स्थौल्यापकर्षण में त्रिफला विशेष उपयोगी होने से त्रिफला वाला पाठ ही अधिक उपयुक्त हैं।
मात्रा और अनुपान (Dose and Anupan) :- 4 से 6 रत्ती सुबह-शाम शहद के साथ दें। गुण और उपयोग
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि ( Main Ingredients and Method of Preparation): – सोंठ, पीपल, काली मिर्च, हरड़, बहेड़ा, आमला, चव्य, चित्रक, विड्लवण, काला नमक, वाकुची और सेंधानमक प्रत्येक का कपड़छन किया हुआ चूर्ण 1-1 भाग और लौह भस्म इन सब दवाओं के बराबर लेकर सबको एकत्र खरल कर रख लें।