Takra Vati
तक्रबटी
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि :
शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक ।-। तोला, शुद्ध बच्छनाग 2 माशा, ताम्र भस्म 4 माशा, है पीपल और मण्डूर भस्म १-१ तोला लेकर प्रथम पारा-गन्धक की कज्जली बना लें, फिर अन्य औषधियों का चूर्ण मिला कर सबको 7 दिन तक काले जीरे के रस में घोंट कर 2-2 रत्ती की गोलियाँ बना, सुखा कर रख लें। भै. र,
मात्रा और अनुपान:
1- 1 गोली सुबह-शाम तक्र (छाछ) के साथ सेवन करें।
गुण और उपयोग:
- पुरानी से पुरानी ग्रहणी जब किसी भी दवा से अच्छी न हो रही हो, रोगी दिन-प्रतिदिन कमजोर होता जा रहा हो, दस्त की मात्रा तथा तादाद बढ़ती ही जाती हो, पेट की गड़बड़ी तथा आँतों की कमजोरी के कारण पाचन-क्रिया बिलकुल मन्द पड़ गयी हो, तब इस बटी का उपयोग किया जाता है।
- यदि कल्प-रूप से इस दवा का उपयोग किया जाय, तो बहुत शीघ्र लाभ होता है।
- शोथ एवं ग्रहणी रोग में इस दवा का कल्प प्रारम्भ करते हुए इसके सेवन-काल में लवण और पानी एकदम बन्द कर दें। पानी की जगह केवल छाछ (मड्टा) पीने को दें।
- आहार में लघुपाकी तथा हल्का अन्न दें। इस क्रम से दवा सेवन कराने से दुःसाध्य शोथ एवं संग्रहणी रोग अच्छा हो जाता है।
- पाण्डु, मन्दाग्नि रोग, यकृत् रोग, इनमें भी इसके सेवन से उत्तम लाभ होता है।