Sarasvatarist

सारस्वतारिष्ट
गुण और उपयोग (Uses and Benefits) :
- इसके सेवन से आयु, वीर्य, धृति, मेधा (बुद्धि), बल, स्मरणशक्ति और कान्ति की वृद्धि होती है।
- यह रसायन–हद्य अर्थात् हृदय के रोगों को दूर करने वाला या हृदय को बल प्रदान करने वाला है।
- बालक, युवा (जवान), वृद्ध, स्री, पुरुषों के लिए हितकारी है।
- यह ओजवर्द्धक है।
- इसके सेवन से आवाज मधुर हो जाती है।
- रजोदोष और शुक्रदोष नष्ट करने के लिए इस आसव का उपयोग किया जाता है।
- अधिक पढ़ने अथवा और भी किसी कारण से स्मरणशक्ति का हास हो गया हो, तो उसे भी ठीक करता है।
- यह आसव बलवर्धक, हृदय को पुष्ट करने वाला, चित्त को प्रसन्न करने वाला तथा दिमाग को तर रखने वाला है। इसका प्रभाव वातवाहिनी नाड़ियों पर विशेष होता है, यह पित्तशामक भी है।
- कभी-कभी स्त्रियों को ऐसा मालूम होता है कि शरीर घूम रहा है। उनकी नजर के सामने सब चीजें घूमती हुई दिखाई देती हैं। इसमें चक्कर आना, आँख बन्द करने से अच्छा मालूम पड़ना, आँख खोलने में परिश्रम और चक्कर का वेग विशेष मालूम होना, घबराहट, चित्त में अशान्ति, तन्द्रा, निद्रा न आना, किसी की बात अच्छी न लगना, कभी-कभी बेहोश भी हो जाना आदि उपद्रव होते हैं। ऐसी अवस्था में सारस्वतारिष्ट के उपयोग से बहुत शीघ्र लाभ होते देखा गया है, क्योंकि उपरोक्त विकार मासिक धर्म की खराबी से उत्पन्न होता है। जिस स्त्री को मासिक धर्म ठीक-ठीक नहीँ होता अथवा एकदम नहीं होता या नियत समय पर और उचित मात्रा में नहीं होता, उसे पित्त-प्रकोप के कारण उपरोक्त उपद्रव उत्पन्न होते हैं, जिससे वातवाहिनी नाड़ियाँ भी उत्तेजित हो जाती हैं। इन सबका सारस्वतारिष्ट तुरन्त शमन कर देता है।
- छोटे-छोटे बच्चों को लगातार दूध के साथ कुछ दिन तक नियमित रूप से सेवन कराने से उनकी बुद्धि तीव्र हो जाती, स्मरण-शक्ति बढ़ती, बोली अच्छी और स्पष्ट निकलने लगती तथा आँख की रोशनी तेज हो जाती है। अर्थात् गले से ऊपर जितने अंग हैं, उन अंगों को इससे काफी सहायता मिलती है। इसीलिए उन्माद और अपस्मार आदि मानसिक विकारों को दूर करने के लिए सबसे पहले इसी का प्रयोग किया जाता है।
- जिस स्री को यौवनवय आने पर भी रजोधर्म न होता हो, शरीर दुबला हो, अंग-प्रत्यंग पुष्ट न हों, शरीर में रक्त की कमी हो, उसे सारस्वतारिष्ट के सेवन से बहुत शीघ्र लाभ होता है।
- यह गर्भाशय और बीजाशय दोनों को बलवान बनाता है।
मात्रा और अनुपान (Dose and Anupan) :- 1 तोला से 2 तोला तक, सुबह-शाम खाना खाने के बाद समान भाग जल के साथ दें।
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि ( Main Ingredients and Method of Preparation): – ब्राह्मी । सेर, शतावर, विदारीकन्द, बड़ी हरे, खस, अदरख और सौफ–प्रत्येक 20- 20 तोला, सबको जौकुट कर 25 सेर 8 तोला जल में पकावें। जब चौथाई (6 सेर 6छटाँक 2 तोला) जल बाकी रहे, तब कपड़े से छानकर उसमें शहद (अभाव में पुराना गुड़) 40 तोला. और चीनी (खाण्ड) 1 सेर, धाय के फूल 20 तोला, रेणुका, निशोथ, छोटी पीपल, लौंग, बच, कूठ, असगन्ध, बहेड़ा, गिलोय (गुर्च), छोटी इलायची, वायविडंग, दालचीनी और स्वर्णपत्र–प्रत्येक 7-7 तोला, इनका चूर्ण कर, सब सामान को चीनी मिट्टी की पेचदार ढक्कनवाली बरनी (बर्तन) में भर कर एक मास रहने दें। एक मास बाद तैयार हो जाने पर, कपड़े से छान कर रख लें। —भै.र.,
वक्तव्य : स्वर्णपत्र के स्थान. पर सुवर्ण लवण मिलाकर भी बना सकते हैं। सुवर्ण लवण छानने के बाद मिलाना चाहिए। इस योग में जल का परिमाण द्रवद्वैगुण्य. परिभाषा के अनुसार लिया गया है। बहुत से वैद्य बिना स्वर्णपत्र डाले भी बनाते हैं। उसमें स्वर्ण के गुणों को छोड़कर शेष सभी गुण रहते हैं। सर्वसाधारण के लिये यह उपयोगी है।