Punarnavadi Churan

पुनर्नवा चूर्ण
गुण और उपयोग–
- इसके सेवन से समस्त शरीर पर फैला हुआ शोथ-रोग दूर हो जाता है तथा उदर रोगों का नाश करता है। |
- इसमें पुनर्नवा की प्रधानता होने से यह चूर्ण दीपक, पाचक, दस्तावर, मृत्रविरेचक (मूत्र लाने वाला) तथा शोथ-नाशक है।
- इस चूर्ण का प्रधान गुण पेशाब खुल कर लाना तथा शोथ नाश करना है।
- मूत्र ल होने की वजह से ही यह शोथध्न है। क्योंकि पनर्नवा के सेवन से मूत्रपिंड में बिना किसी प्रकार का कष्ट हए मत्र की मात्रा बढ़ जाती है।
- मूत्र पिंड पर रक्त का दबाव बढ़ कर पेशाब की मात्रा बढ़ जाती है।
- इसके अतिरिक्त मूत्र पिण्ड के अन्दर मूत्र उत्पन्न करने वाले अवयवों पर इस (पुनर्नवा) की उत्तेजक क्रिया होती है जिससे पेशाब में क्षार की मात्रा बढ़ जाती है। |
- हृदय के ऊपर पुनर्नवा की क्रिया थोड़ी किन्तु स्पष्ट रूप से होती है। इससे हुदय की संकोचक क्रिया बढ़ जाती है, नाड़ियों में रक्त प्रवाह जोरों से होने लगता है और रक्त का दबाव बढ़ जाता है।
- रकत का दबाव बढ़ने के कारण ही मूत्र का परिमाण बढ़ जाता है ` जिससे शरीर में संचित दषित जल निकल जाता है। अतएव, पुनर्नवा में शो थघ्न धर्म माना गया है और”यह वास्तव में शोथध्न है भी।
- इन्हीं कारणों से शोथ रोग में इसके उपयोग से लाभ होता है।
मात्रा और अनुपान–३ माशे की मात्रा में गोमूत्र के साथ दें।
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि : पुनर्नवा, हर्रे, पाठा, देवदारु, बेलछाल, गोखरू, दोनों कटेली, हल्दी, दारुहल्दी पीपल और गजपीपल (अभाव में पीपलामूल), अड्सा, चित्रक -प्रत्येक समान भाग लेकर चर्ण बनावें। —भै. र.