Parsarni Tel

प्रसारिणी तैल
गुण और उपयोग (Uses and Benefits):
- इस तैल से मालिश की जाती और नस्य तथा अनुवासन बस्ति दी जाती है।
- यह तैल गृध्रसी, अस्थि-भंग (हड्डी टूटना), मन्दाग्नि, अपस्मार (मृगी), उन्माद (पागलपन) और विद्रधि का नाश करता है। जो व्यक्ति तेज नहीं चल सकते, उनकी नसो में रक्त का संचार कर फुर्ती पैदा करता है।
- त्वचा और शिरा तथा सन्धि (जोड़)-गत वायु को नष्ट करता है।
- इस तैल में यह विशेषता है कि जितना फायदा वायु से पीड़ित मनुष्य को इससे होता है, उतना ही फायदा पशुओं–बैल, घोड़े, गाय आदि को भी होता है।
- यह तैल रक्त और मांस को पुष्ट करने वाला तथा कमजोर हाथ-पाँच आदि शारीरिक अंगों में शक्ति प्रदान करने वाला तथा शरीर की कान्ति को सुधारने वाला है।
- इसकी मालिश से शरीर में बल की वृद्धि होती तथा सन्तानोत्पादन की शक्ति आती है!
- जो मनुष्य लंगड़ाकर चलता हो, वह इस तैल की लगातार नियमित रूप से कुछ दिनों तक मालिश करे तथा दूध के साथ सेवन करे, तो लंगड़ापन अवश्य दूर हो जायेगा, क्योकि इसमें प्रसारणी प्रंधान है, जो नसों तथा हड्डियों के विकार को ठीक करने में प्रसिद्ध है।
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि ( Main Ingredients and Method of Preparation): – 5 सेर प्रसारिणी को 72 सेर 4 तोला जल में पकावें, जब 534 तोला जल शेष रह जाय, तब उतार कर छान लें। फिर इसमें 534 तोला मूर्च्छित तिल तैल तथा दही और कांजी तैल के बराबर, गौ का दूध तैल से चौगुना और तैल का आठवाँ हिस्सा निम्न औषधियों का कल्क लें, यथा-मुलेठी, पीपलामूल, चित्रक की जड़, सेंधा नमक, बच, प्रसारिणी, देवदारु, रास्ना, गजपीपल, भिलावा, सौंफ और जटामांसी, लालचन्दन सब समान भाग लेकर कल्क बना, सब को एकत्र कर, विधिपूर्वक तैल सिद्ध करें।
वक्तव्य : प्रसारणी नाम से कुछ वैद्य राजस्थान में होने वाली खींप को लेते हैं और कुछ लोग देहरादून और बंगाल आदि में होने वाली गन्ध प्रसारणी नामक बदबूदार लता को लेते हैं।