Parmehmihir Tel

प्रमेहमिहिर तैल
गुण और उपयोग (Uses and Benefits):-
- इसकी मालिश से वात-विकार तथा वातज, पित्तज, कफज, सन्निपातज, मेदोगत और मांसगत ज्वर नष्ट होते हैं।
- यह शुक्रक्षय के कारण दुर्बल व्यक्तियों के लिये विशेष उपयोगी है।
- यह तैल दाह, पिपासा, पित्त, छर्दि (वमन), मुँह सूखना तथा 20 प्रकार के प्रमेह रोगों को नष्ट करता है
- यह तैल पित्त और वायुशामक, सौम्य और रक्तादि धातुवर्द्धक एवं शरीर को पुष्ट करने वाला तथा वीर्यवाहिनी नाड़ियों को ताकत देने वाला है।
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि ( Main Ingredients and Method of Preparation): – सोया, देवदारु, नागरमोथा, हल्दी, दारुहल्दी, मूर्वा, कूठ, असगन्ध, सफेद चन्दन, लाल चन्दन, रेणुका, कुटकी, मुलेठी, रास्ना, दालचीनी (तज), इलायची, भारंगी, चव्य, धनियाँ इन्द्रजौ, करंज-बीज, अगर, तेजपात, हरे, बहेड़ा, आँवला, नलिका, सुगन्धबाला, खरेंटी कंधी, मंजीठ, सरल काष्ठ, पझकाष्ठ, लोध्र, सौंफ, बच, कालाजीरा, खस, जायफल, वासा (अडूसा) मूल और तगर–प्रत्येक 1 – 1 तोला लेकर कल्क बनावें। फिर तेल 28 तोला, शतावर का रस 28 तोला, लाख का रस 52 तोला, दही का पानी 512 तोला और दूध 28 तोला सबको एकत्र कर, उपरोक्त कल्क मिलाकर तैलपाक विधि से तेल सिद्ध करें। तेल सिद्ध हो जाने पर छान कर रख लें। भै. र.
वक्तव्य: द्रवदवैगुण्य परिभाषा के अनुसार द्रव पदार्थो को द्विगुण लिया गया है। पाकान्त में वातव्याधि अधिकार में भै० र० में कहे गये गन्धद्रव्यं को मिलाकर, 64 वाँ भाग लेकर, कल्क बनाकर तैल में डालकर, मन्द-मन्द अग्नि पर दो-तीन दिन में पकाकर छानकर रखने से विशेष उत्तम बनता है।