Pardarari Loh

प्रदरारि लौह
गुण और उपयोग (Uses and Benefits) :-
- रक्त-स्राव को रोकने के लिए केवल लौह-भस्म ही काफी है। परन्तु अन्य रक्तरोधक यथा–कुटज छाल, मोचरस आदि दवाओं के संमिश्रण से यंह बहुत ही गुणकारी दवा बन जाती है। अतएव, रक्तप्रदर में इससे शीघ्र शमन होता है। रक्तपित्त और रक्तार्श (खूनी बवासीर) में इससे लाभ होता है। रक्तस्राव से उत्पन्न हुई निर्बलता, अरुचि आदि इससे नष्ट होते हैं।
- प्रदर रोग में तो इसका उपयोग किया ही जाता है, किन्तु इसके साथ ही रजो-विकार (मासिक धर्म की विकृति) में भी उपयोग करने से लाभ होता है।
- कभी-कभी रक्त की कमी से प्रकुपित वायु के कारण स्त्रियों को रजःस्राव के समय कई तरह के उपद्रव उत्पन्न हो जाते हैं। यथा–मासिक धर्म होने के समय कमर और कोष्ठ में दर्द होना। यह दर्द इतने जोरों का होता है कि कमजोर औरत कभी-कभी बेहोश हो जाती है, अथवा रक्ताल्पता के कारण मासिक धर्म ठीक समय पर उचित मात्रा में न होना, या किसी-किसी को मासिक धर्म बहुतर कठिनता के साथ होता है। इसमें भूख नहीं लगती, कमजोरी, पेट में दर्द और मन्दाग्नि हो जाना आदि उपद्रव-होते हैं। ऐसी दशा में प्रदरादि लौह देने से बहुत गुण करता है।
- रक्तपित्त और खूनी बवासीर में होने वाले रक्तस्राव को, इसको सेवन कराकर बन्द करने के अनेक उदाहरण मिले हैं।
- ज्यादा रक्तस्राव होने से शरीर पाण्डु वर्ण का हो गया हो, कमजोरी, काम करने की शक्ति न होना, मन उत्साह-रहित होना, जीवन से निराश हो जाना, मन अप्रसन्न रहना, थोड़ा भी खून बनने पर सब निकल जाना, ऐसी हालत में भी प्रदरारि लौह द्वारा अनेक रोगी अच्छे हुए हैं।
मात्रा और अनुपान (Dose and Anupan) :- 2-4 गोली सुबह-शाम, प्रदर रोग में कुशा-मूल क्वाथ या अशोक छांल के क्वाथ से, रक्त-पित्त तथा खूनी बवासीर में मक्खन, मिश्री या बासास्वरस के साथ देना चाहिए।
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि ( Main Ingredients and Method of Preparation): – 5 सेर कुटज की छाल को जौकुट करके 25 सेर 9 छठाँक 3 तोला पानी में पकावें और 3 सेर 3 छटांक 1 तोला पानी शेष रहने पर, छान, उसे पुनः पकाकर अवलेह जैसा गाढ़ा करें, फिर उसमें मजीठ, मोचरस, पाठा, बेल-गिरी, नागरमोथा, धाय के फूल और अतीस का : कपड़छन किया हुआ चूर्ण 4-4 तोला, अभ्रक और लौह भस्म 4-4 तोला मिला, गाढ़ा होने. पर 3-3 रत्ती की गोलियाँ बना, सुखाकर रख लें। —भै. र.