Panchamrit Lohmandur

पंचामृत लौहमण्डूर
गुण और उपयोग (Uses and Benefits) :-
- इसके सेवन से शोथयुक्त जीर्ण, संग्रहणी रोग, पाण्डु, कामला, अग्निमान्द्य, जीर्णज्चर, प्लीहावृद्धि, गुल्म, उदररोग, यकृत् वृद्धि, कास, श्वास, प्रतिश्याय आदि रोग नष्ट होते हैं।
- यह औषधि उत्तम शक्तिवर्धक है।
- इसका उपयोग, विशेषतः रोग की जीर्णावस्था में होता है।
- रोग जितना ही जीर्ण हो, अथवा रोगी की शक्ति जितनी कम हो, यह औषधि उतनी ही कम मात्रा में देनी चाहिए। मात्रा अधिक होने पर विरुद्ध क्रिया होकर हानि होने की सम्भावना रहती है। आँतों में शोथ हो जाने पर अन्न की पाचन क्रिया दूषित हो जाती है। परिणामतः आहाररस और मलों की आगे सरकने की क्रिया व्यवस्थित नहीं होती। आम, मल, विष, कृमि, कीटाणु आदि सभी वृहदनत्र में संचित होते रहते हैं। इस दशा में बड़ी कठिनाई से थोड़ा-थोड़ा मलत्याग होता है। | अन्त्र से जब आमविष का अधिक परिमाण में शोषण हो जाता हैं, तो ज्वर की उत्पत्ति होती है। यदि इस विष-शोषण क्रिया का नाश न हुआ तो यह ज्वर जीर्णता में परिणत हो जाता है, फिर शरीर कृश और निस्तेज हो जाता है। यदि साथ ही विष-शोषण भी रहता है तो ज्वर का विष धातुओं में लीन हो जाता है और सरलता से नष्ट नहीं होता है।
- हर प्रकार के उदर विकृति युक्त जीर्ण ज्वर में पञ्चामृत लौहमण्डूर के प्रयोग से रोग एक मास में समूल नष्ट हो जाते हैं। |
- क्षुधा नाश उदर को दबाने पर दर्द होना, भोजन बिना पचे ही मल बन जाना, शरीर का अतिसार के कारण निस्तेज और कृश होना, इस प्रकार के संग्रहणी रोग में इस औषध का अच्छा प्रभाव होता है। इस रोग में यदि ज्वर, कास, श्वास आदि लक्षण हों, तो वे भी कुछ काल में नष्ट हो जाते हैं।
- फुफ्फुस, यकृत्-प्लीहा और वृक्क स्थान को यह उत्तम बल प्रदान करता है और पाचन क्रिया को व्यवस्थित करता है। इस कारण से यकृत् वृद्धि और इनमें उत्पन्न पाण्डु, कामला और उदर रोग भी नष्ट होते हैं।
मात्रा और अनुपान (Dose and Anupan) :- 1-2 गोली, दिन में दो बार सुबह-शाम तालमखाना-क्वाथ से दें।
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि ( Main Ingredients and Method of Preparation): – लौह भस्म, ताम्र भस्म, शुद्ध गन्धक, शुद्ध पारद, अभ्रक भस्म, सोंठ, मिर्च, पीपल, हरड़, आंवला, नागरमोथा, वायविडंग-चित्रकमूल की छाल, पीपल, चिरायता, देवदारु, हल्दी, दारुहल्दी, पोहकरमूल (कूठ), अजवायन, कालाजीरा, सफेद जीरा, कचूर, धनियाँ, चव्य–प्रत्येक ।-। भाग लेकर प्रथम पारा-गन्धक की कज्जली बनार्वे, पश्चात् अन्य चूर्ण करने योग्य रव्या का सूक्ष्म कपड़छन चूर्ण करें। मण्डूर भस्म सब द्रव्यो से आधा भाग (73 तोला) लेकर इसको चौगुने (52 तोला), गोमूत्र और आठगुना (104 तोला) पुनर्नवामूल क्वाथ लें। प्रथम लौह को साफ कड़ाही में मण्डूर भस्म तथा लौह भस्म डालकर गोमूत्र में पकावें, फिर पुनर्नवा क्वाथ मिलाकर पकावें। पाक गाढ़ा होने पर उपरोक्त पारद-गन्धक की कज्जली, ताप्र भस्म, अभ्रक भस्म तथा काष्ठौधियों का सूक्ष्म कपड़छन चूर्ण मिलाकर नीचे उतार करके मर्दन करें। शीतल होने पर इसमें 4 तोला मधु मिला मर्दन कर 3-3 रत्ती की गोलियाँ बना, सुखाकर रख लें।