Pamari Parlep

पामारि प्रलेप
गुण और उपयोग–
- सरसों के तेल में मिला कर खुजली पर मालिश करने से तीन चार दिन के अन्दर ही खजली आराम हो जाती है।
- यह दवा तेज है, अतः पहले बहत कम चूर्ण तेल में मिला कर मालिश करें।
- जैसे-जैसे सहय होता जाय, वैसे-वैसे दवा की मात्रा बढ़ा कर लगाना चाहिए।
- यह सुकुमार प्रकृतिवालों के लिए सेवन-योग्य नहीं है।
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि : अशद्ध पारद, सफेद जीरा, काला, (अरण्य जीरक), हल्दी, आँबा हल्दी, काली मिर्च सिन्दर, अशद्ध गन्धक, अशद्ध मैनशिल, चकवड़ (पँवाड के बीज)-प्रत्येक १-१ भाग लेकर प्रथम पारा-गन्धक की कज्जली बनावें, फिर अन्य द्रव्यों का सक्ष्म चूर्ण करके एकत्र मिला सरक्षित रखलें। ‘ सि. यो. सं बकतव्य–इस योग में काला जीरा शब्द से अरण्यजीरक जिसे काली जीरी कहते हैं, लेना विशेष लाभदायक है, क्योंकि काली जीरी कुष्ठ, पामा (खुजली) आदि विकारों को नष्ट करने में सुप्रसिद्ध है। सि.यों.सं. में यह योग ‘रसादि प्रलेप’ के नाम से है, किन्तु पामा रोग में विशिष्ट लाभदायक होने के कारण हम इसे ‘पामारि प्रलेप’ के नाम से ब्यवहार करते हैं।
दूसरा–अशुद्ध गन्धक २ तोला, मैर्नाशल, कालीमिर्च, कबीला और दारुहल्दी-प्रत्येक १-१ तोला, नीलाथोथा (तूतिया), मुर्दाशंख, सुहागा और मटिया सिन्द्र-प्रत्येक ६-६ माशा कट-कपड़छन कर महीन चर्ण बनावें।