Narayan Tel

नारायण तैल
गुण और उपयोग (Uses and Benefits) :
- इस तैल के उपंयोग से सब प्रकार के वायु रोग जैसे पक्षाघात, अर्दित, हनुस्तम्भ, मन्यास्तम्भ, अपबाहुक, कमर का दर्द, पसली का दर्द, कान का दर्द, शरीर के किसी अवयव का सूखना, लँगड़ापन, सिर का दर्द तथा अन्य एकांग या सर्वाङ्ग में होने वाले वात रोगों में लाभ होता है।
- इस तैल का उपयोग मालिश करगे में, नस्य देने में, कान में डालने में, पिलाने और बस्ति देने में किया जाता है।
- यह तैल सौम्य और अद्भुत चमत्कार दिखाने .के कारण बहुत विख्यात है।
- इसमें शतावरी का रस प्रधान है और चूँकि शतावरी का नाम नारायणी है, अतएव इसका भी नाम नारायण तैल रखा गया है।
- जहाँ-जहाँ दर्द हो, वहाँ-वहाूँ इस तैल की धीरे-धीरे मालिश करें। फिर दर्दस्थान को ऊनी कपड़े से लपेट दें। लगभग तीन घण्टे के बाद पुनः गरम पानी से सेंक करें।
- यदि वायु की प्रबलता हो तो पानी गरम करते समय निर्गुण्डी, करंज नीम इनमें से एक या सब वृक्षों के पतत और खशखश के पोस्त डालकर पानी गरम करना चाहिए। रात को एक बार, या ज्यादा दर्द हो तो सुबह-शाम तेल लगाकर सेंक दें।
- शरीर के किसी कोमल स्थान पर यह लगाने से किसी प्रकार की हानि नहीं होती है।
- छोटे बच्चों की अण्ड-कोष-वृद्धि या बड़ी उम्र वालों की अण्डवृद्धि पर भी इसका उत्तम उपयोग होता है।
- धनुर्वात में छाती पर गले से लेकर कमर तक पीठ की सभी नसों पर यह तेल लगाकर उपरोक्त विधि से सेक करना चाहिए। हर दो घण्टे बाद 15 बुँद तेल गर्म पानी या किसी वातनाशक काड़े में मिलाकर पिलाने से भी लाभ होता है।
- इस तरह से गला व ठोडी स्तम्भ, गलग्रह, सर्वाङ्ग (शरीर) या हाथ-पाँव की ऐंठन आदि अति त्रास-दायक वायु के दर्द दूर हो जाते हैं।
- शरीर का एक भाग सूख जाना लकवा, पक्षाघात आदि वायु के कारण शरीर का एक भाग सूख जाता है। वहाँ रक्त संचार न होने से वह भाग शून्य और पतला हो जाता है। ऐसी हालत में नारायण तैल की मालिश से बहुत लाभ होता है।
- कभी-कभी गला और पाँव के जोड़ों की हड्डियों में विकार पैदा होकर उनके कारण हाथपाँच को हिलाने-डुलाने में बाधा पड़ने लगती है। उनमें रह-रह कर चक्कर होने लगता है, ऐंठन पैदा होती है ऐसी हालत में नारायण तैल की मालिश एवं सेंक से काफी लाभ होता है।
- करीब एक माह बाद वहाँ की हड्डियों की विकृति दूर हो जाती है और रक्त-संचार होने लग जाता है।
- पुराने वात रोगों में इस तैल कीं मालिश कर और साथ ही चन्द्रप्रभा बटी, योगराज गूगल आदि का सेवन करने से कष्टसाध्य वात रोग भी दूर हो जाते हैं।
- ज्वर, राजयक्ष्मा, माथे का दर्द, बुद्धि की कमी, स्मरण-शक्ति का हास, बधिरता आदि का नाश करने के लिए नारायण तैल का उपयोग किया जाता है।त्वचा (चमड़ी), नस, मांस और हड्डियों को मजबूत करना इत्यादि गुण इस तेल में विशेष होने की वजह से यह बालक, युवक, वृद्ध, गर्भवती स्त्रियों सबको लाभ करता है।
- इस तेल की मालिश से नसें फैल जाती हैं तथा रक्त का संचार अच्छी तरह होने लगता है, यही कारण है कि जो अंग शुष्क-निजीव से हो जाते हैं, वे भी इसकी मालिश से जीवन प्राप्त कर पुष्ट हो जाते हैं। यह गुण और तेलों की अपेक्षा इसमें अधिक है।
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि ( Main Ingredients and Method of Preparation): – असगन्ध, बरियार (खरेंटी) की जड़, बेल की जड़, छोटी कटेरी, बड़ी कटेरी, गोखरू, सम्मालु की पत्ती, सोनापाठा के मूल या छाल, गदहपुरना (पुनर्नवा) के मूल, उड़द, कटसरैया, रास्ना, एरण्ड मूल, देवदारु, प्रसारणी और अरणी–प्रत्येक 40-40 तोला लें। उनको जौकुट करके 5 सेर 6 तोला जल में पकारवें। जब 2 सेर 4 तोला जल शेष रहे, तब उतार कर ठण्डा होने पर कपड़े से छान लें। फिर उसमें तिल का तैल 256 तोला, शतावरी का रस 256 तोला, गाय का दूध 256 तोला, कूठ, छोटी इलायची, सफेदचन्दन बरियार के मूल, जटामांसी, छरीला, सेंधा नमक, असगंध, बच, रास्ना-सौंफ, देवदारु, सरिबन, पिठवन, माषपर्णी, मुद्गपर्णी, तगर-प्रत्येक 8-के तोला लेकर कल्क बना, तैल में मिलाकर पकावे। तैल सिद्ध होने पर कपड़े से छान, शीशियों में भर लें। -सि. यो. सं.