Narayan Churan

नारायण चूर्ण
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि : अजवायन, हाऊबेर, धनियाँ, हर्रे, बहेड़ा, आमला, कलौंजी,स्याहजीरा, पीपलामूल, अजमोद, कचूर, बच, सौंफ, जीरा, सोंठ, पीपल, स्वर्णक्षीरी (सत्यानाशी की जड़-चोक), चीता, यवक्षार, सज्जीखार, पृष्करमल, कठ, पाँचों नमक वायविडंग-प्रत्येक १-१ तोला और दन्तीमूल ३ तोला, निशोथ २ तोला, इन्द्रायण की जड़ २ तोला, सातला (सेहुण्ड) ४ तोला लेकर कूट-कपड़छन चूर्ण बनाकर रख लें। -“यों. र.
मात्रा और अनुपान–३ से ६ माशे तक सुबह-शाम निम्नलिखित अनुपान के साथ दें। उदर रोगों में-तक्र (छाछ) के साथ;गुल्म रोग में-बेर के क्वाथ के साथ, पेट में वायु भर जाने पर-मद्य के साथ अथवा अर्क सौंफ के साथ दें। वातव्याधि में-महारास्नादि क्वाथ के साथ दें। दस्त की कब्जियत में-दही के पानी के साथ,अर्श में अनार के रस के साथ, अजीर्ण में-गरम जल के साथ दें।इसके अतिरिक्त, भगन्दर, पाण्डु रोग, खाँसी, श्वास आदि रोगों में उचित अनुपान के साथ प्रयोग करें।
गुण और उपयोग–
- इस चूर्ण का उपयोग विशेषकर उदर रोग में किया जाताःहै जैसे दस्त कब्ज रहना, हवा (अपान वायु) नहीं छूटना, पेट में वायु भर जाना, दूषित मल में इकट्ठा हो जाना, भूख नहीं लगना आदि रोगों में यह विशेष गुणकारी है, क्योंकि यह : रेचक, मलशोधक तथा दीपक-पाचक है। |
- गुल्म उदर रोग में–पेट फलना, दस्त की कब्जियत, शोथ, उदावर्त, अरुचि हृद्रोग, दमा, खाँसी, भगन्दर, मन्दारिन,कुष्ठ और बवासीर आदि रोगों में दस्त साफ के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। |
- शोथ रोग में–पेट में ज्यादा मल संचय होने पर रस-रक्तादि धातु क्षीण होने लगते हैं साथ ही पाचक पित्त और शरीर का पोषण करने वाली सहायक इन्द्रियाँ भी कमजोर हो जाती हैं, जिससे उचित परिमाण में रसरक्तादि नहीं बनते। शरीर में जलीय भाग विशेष होने से देह सूज जाती है। इसमें मुँह और पाँव पर विशेष सूजन होती, पेट.भी कछ उभर आता, नामि उभर जाती, शरीर का रंग पीला और-रोगी कमजोर हो जाता दस्त साफ नहीं आता आदि उपद्रव होते हैं। ऐसी दशा में नारायण चूर्ण वास्तव नारायण भगवान की तरह रक्षा करता है। इसके सेवन से मल ढीला होकर दस्त साफ आने लगता है।
- पाचन-क्रिया ठीक हो जाती और रस-रक्तादि भी उचित मात्रा में बन कर शरीर में रक्ताणुओं की वृद्धि हो जाती तथा शरीरस्थ जल-भाग सूखने लग जाते और : शोथ भी नष्ट हो जाता है।