Kumariasava

कुमार्यासव नं 1
गुण और उपयोग (Uses and Benefits) :
- इसके सेवन से गुल्म, परिणामशूल, यकृत-प्लीहा, नलाश्रित वायु, मेदोवायु; जुकाम, श्वास, दमा, खाँसी, अग्निमांद्य, कफ और मन्द ज्वर, पाण्डु, पुराना ज्वर, कमजोरी, बीसों प्रकार के प्रमेह, उदावर्त, अपस्मार, स्मृतिनाश, मूत्रकृच्छू, शुक्रदोष, अश्मरी (पथरी), कृमिरोग, रक्तपित्त, मासिक धर्म का न होना या कम होना, शवितक्षय, गर्भाशय के दोष और आर्तव की अशुद्धि, अम्लपित्त, संग्रहणी, अपस्मार, वातविकार और बवासीर समस्तरोग नष्ट होते हैं।
- कुमार्यासव में मुख्य वस्तु घीकुमारी का रस है, इसके अतिरिक्त लौहचूर्ण, हरे आदि भी दवाएँ हैं, अतएव, पाचक कोष्ठ को शोधन करने वाला, भूखे बढ़ाने वाला और पौष्टिक है।
- ऐसे बच्चे जो अन्न खाते हों उनके लिए यह दवा बहुत मुफीद है तथाः 5-6 माह के बच्चों के लिए यदि बराबर पेट खराब रहता हो, जिगर या तिल्ली बढ़ी हुई हो, अनपच दस्त आदि होते हों, तो देने में कोई नुकसान नहीं है, क्योंकि यह तिल्ली, जिगर, कफविकार, श्वासखाँसी आदि बच्चों के रोगों में विशेष गुण करता है।
- इसका उपयोग विशेष कर पेट के विकारों में बच्चे से लेकर बूढ़े तक सब के लिए किया जाता है।
- प्रारम्भ में इसकी मात्रा थोड़ी ही देनी चाहिये। जैसे-जैसे बर्दास्त होता जाय, वैसे-वैसे मात्रा बढ़ाते जाना ही इसका अच्छा नियम है। एक-दो सप्ताह लगातार सेवन करने से इसका गुण मालूम होता है।
- शूल, गुल्मादि रोगों में यदि रोगी बलवान हो तो इसके साथ वज्रक्षार चूर्ण का भी उपयोग करें। इससे पेट में वायु भरने नहीं पाता और रोग में भी बहुत शीघ्र आराम हो जाता है तथा अग्नि (जठराग्निहाजमा) भी तेज हो जाती, खाई हुई चीजें बहुत जल्द हजम होने लगतीं और रस-रक्तादि धातु बढ़ कर शरीर पुष्ट और बलवान हो जाता है।
मात्रा और अनुपान (Dose and Anupan) :- १ से 2 तोला, बराबर जल मिलाकर दोनों समय भोजन के बाद दें।
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि ( Main Ingredients and Method of Preparation): – अच्छा पका हुआ और रस भरा ग्वारपाठा (घीकुमारी) लाकर उसे धो, छोटे-छोटे टुकड़े कर समान भाग जल मिलाकर कलईदार ताँबा या पीतल की अथवा लोहे की बड़ी कड़ाही में डाल, आग पर चढ़ा, पाँच-दस उफान आवे इतना गरम कर नीचे उतार कर रख दें। ठण्डा होने पर हाथ से मसल कर कपड़े से छान लें।
ऐसा निकाला हुआ रस 42 सेर 4 तोला, गुड़ 5 सेर, लौह चूर्ण 3 सेर, शहद (अभाव में पुराना गुड़) 2 सेर और सोंठ, मिर्च, पीपल, लौंग, दालचीनी, तेजपात, बड़ी इलायची, नागकेशर, चित्रक, पीपलामूल, वायविडंग, गजपीपल, चव्य, हाञत्रेर, धनियाँ, कुटकी, सुपारी, नागरमोथा, हरड़, बहेड़ा, आँवला, रास्ना, देवदारु, हल्दी, दारहल्दी, मूर्वामूल, मुनक्का, दन्तीमूल, पुष्करमूल, बला, अतिबला, कौंच के बीज, गोखरू, सौंफ, हिंगपत्री (डिकामाली), अकरकरा, उटंगन बीज, श्वेत पुनर्नवा, लाल पुनर्नवा, लोध, सवर्णमाक्षिक भस्म–प्रत्येक 3-3 तोला और धाय के फूल 32 तोला लेकर सबको चीनी मिट्टी के पेचदार ढक्कन की बरनी या कड़ाही के पीपे में डाल कर रख छोड़ें, फिर सन्धान कर 7 मास तक रहने के बाद छान कर रख लें। —शा. ध. सं. वक्तव्य : सोंठ से लेकर लोधर् तक की काष्ठौषधियों को मोटा चूर्ण बनाकर डालें।
सि. यो. सं. में सुपारी, मूर्वामूल, मुनक्का, कौंचबीज, गोखरूबीज, लोध–ये चीजें नहीं है। कोयल (अपराजिता) के बीज, सरफोंका मूल, रोहेड़े (रोहितक) की छाल–ये चीजें हैं। शेष सब द्रव्य समान हैं।