Irimedadi Tel

इरिमेदादि तैल
गुण और उपयोग (Uses and Benefits) :
- इस तैल के गण्डूष करने (कुल्ले करने) से मसूढ़ों (दन्तवेष्ट) की सड़न, पीब गिरना, दाँतों का हिलना, शीर्णदन्त, दन्त सौषिर, श्यावदन्त, दन्त प्रहर्ष, दन्तविद्रधि, कृमिदन्त, (दाँतों . में कीड़ा लगना), दाँतों का कड़कना, मुखदुर्गन्धि, जीभ की पीड़ा, तालु की पीड़ा, ओष्ठ ग्रन्थि तथा अन्य समस्त प्रकार के मुखरोग नष्ट होते हैं और तालुगत, जिह्वागत रोगों को नष्ट करता है!
मात्रा और प्रयोग का तरीका(Dose and direction of use): इस तैल का गण्डूष में (कुछ समय मुँह में घोरण कर कुल्ला करने में), फाह रखने में तथा मालिश करने में यथायोग्य व्यवहार होता है।
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि ( Main Ingredients and Method of Preparation): – इरिमेद छाल 5 सेर लेकर जौकुट करके 25 सेर 9 छटांक 3 तोला जल में. क्वाथ करें। अष्टमांश जल शेष रहने पर उतार कर छान लें, पश्चात् तिल तैल 28 तोला लें, और कल्क के लिए इरिमेद छाल, लौंग, गेरू, अगर, पद्मकाष्ठ, मंजीष्ठ, लोध्र, मुलेठी, लाख, बड़ की छाल, नागरमोथा, दालचीनी, जायफल, कपूर, शीतलचीनी, खदिरकाष्ठ, धाय के फूल, छोटी इलायची, नागकेशर, कायफल–ये प्रत्येक द्रव्य 7-7 तोला लेकर कपूर को छोड़कर शेष काष्ठौषधियों का कल्क बनावें! पश्चात् सब द्रव्यो को एक साथ मिलाकर तैल पाक विधि से तैल सिद्ध करें। तैल सिद्ध होने पर उतार लें, पश्चात् कपूर मिलाकर सुरक्षित रखें। -शा. सं.
वक्तव्य; शा० सं० के मूल पाठानुसार इरिमेद छाल 5 सेर को एक श्वेण (12 सेर 12 छटाँक 4 तोला) जल में पकाकर चतुर्थांश क्वाथ शेष रहने का विधान है; किन्तु इतने कम जल में पकाने पर क्वाथ अच्छी तरह नहीं बन पाता है ऐसा अनुभव में आया है। दो श्वेण (25 सेर 9 छटाँक 3′ तोला) जल लेकर क्वाथ बनाना एवं अष्टमांश क्वाथ अवशेष रखकर तैलपाक करने से उत्तम बनता है। इस योग में क्वाथार्थ जल और क्वाथ के परिमाण में ऐसा संशोधन किया गया है।