Grahnivihir Tel

ग्रहणीमिहिर तैल
गुण और उपयोग (Uses and Benefits) :
- यह सब प्रकार की ग्रहणी, अतिसार, ज्वर, तृष्णा, श्वास, हिक्का और उदर रोगों का नाश करता है।
- यह तेल रसायन हैं और अकाल में केश (बाल) पकने को रोकता है तथा देह की ढीली चमड़ी को सख्त करता है। इसे यथोचित अनुपान के साथ 3-6 माशे की मात्रा में पिलाना और पेट पर मालिश करनी चाहिए।
- संग्रहणी रोग में ,पुरानी संग्रहणी में रस-रक्तादि धातुओं को कमी तथा अन्नादिकों का पाचन ठीक तरह से न होने और आँतों की कमजोरी के कारण दस्त पतले होने लगते हैं। इस रोग में जब किसी दवा से लाभ होते न दीख पड़े तब इस तेल को 3 माशे बकरी या गाय के दूध में मिलाकर पिलावें तथा थोड़ा-सा तेल लेकर शरीर में या पेट पर मालिश करें, साथ ही पीयूषवल्ली रस और धान्यपंचक का काढ़ा भी सेवन करते रहने से बहुत शीघ्र लाभ होता है।
- खाने के लिए केवल मट्ठा ही पीने को दें और कुछ नहीं।
- इस तरह करीब दो सप्ताह में ही काफी सुधार मालूम होने लगता है!
- यह तेल वायुनाशक होने के कारण ग्रहणी रोग में विशेष लाभ करता है।
- यह गर्भस्थापनकारक भी है।
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि ( Main Ingredients and Method of Preparation): – धनियाँ, धाय के फूल, लोध, मंजीठ, अतीस, हरे, खस, मोथा, नेत्रवाला (खश), मोचरस, रसोत, बेलगिरि, नीलोफर, तेजपात, नागकेशर, कमलकेशर, गिलोय, इन्द्रजौ, श्यामलता (अनन्तमूल), पद्माख, कुटकी, तगर, जटामांसी, दालचीनी, काला भाँगरा, पुनर्नवा, आम की छाल, जामुन की छाल, कदम्ब की छाल, कुड़े की छाल, अजवायन और जीरा– . प्रत्येक – 1- 1 तोला लेकर इनका कल्क बना लें। यह कल्क और मट्टा (छाछ) या कुड़े की छाल का क्वाथ अथवा धनियाँ का क्वाथ 8 सेर के साथ तिल तैल मूर्च्छित 2 सेर मिलाकर तेलपाक-विधान सें तैल सिद्ध कर लें। वक्तव्य द्रवद्वैगुण्य परिभाषा के अनुसार द्रव पदार्थों को द्विगुण लिया गया हैं। कुछ लोग यहाँ मट्ठा, कुड़ाछाल क्वाथ, धनियाँ क्वाथ–इन तीनों द्रवों से तेल पाक करते हैं। ऐसा करने से विशेष गुणकारी बन जाता हैंl