Gokshuradi Gugglu(गोक्षुरादि गुग्गुलु )
गोक्षुरादि गुग्गुलु
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि :
2 तोले गोखरू के पंचाग को कूट कर छः गुने जल में पकावें। आधा जल शेष रहने पर छान लें। फिर इसमें 28 तोला शुद्ध गुग्गुलु मिला कर गुड़पाक के समान गाढ़ा कर, उसमें निम्नलिखित प्रक्षेप द्रव्य मिलावें। सोंठ, मिर्च, पीपल, हरे, बहेड़ा; आँवला, नागरमोथा प्रत्येक का कपड़छन किया हुआ चूर्ण 4-4 तोला मिला, घी या एरण्ड तैल के साथ कूट कर 3-3 रत्ती की गोलियाँ बना कर रख लें। | “आशा. सं.
मात्रा और अनुपान:-१ गोली सुबह-शाम गोखरू क्वाथ या प्रमेहहर क्वाथ के साथ देना चाहिए।
गुण और उपयोग:
- इसके सेवन से प्रमेह, मूत्रकृच्छु (रुक-रुक कर पेशाब होना), मूत्राघात, अश्मरी (पथरी), प्रदर रोग, वातरक्त, शुक्रषष और मूत्राशयगत समस्त विकारों में लाभ होता है।
- इस दवाका असर मूत्राशय और मूत्रनली तथा वीर्यवाहिनी शिराओं पर अधिक होता है। मूत्रकृच्छू । यह रोग कई कारणों से होता है यथा सूजाक, पथरी, कृमि, मूत्रमन्थि का प्रदाह, जरायु की विकृति, वृक्क (गुर्दे) का विकार, आंव आदि से यह रोग उत्पन्न होता है। वृक्क (गुर्दे) के विकार से जब मूत्रकृच्छ होता है, तब वमन और दस्त की हाजत होती है।
- गुर्दे से वेदना (दर्द) उठकर बस्ति (पेडू) या जननेन्द्रिय तक जाती है। प्रधानतया मूत्रकृच्छ्र में बारम्बार पेशाब करने की इच्छा होती है और बड़े कष्ट के साथ बूंद-बंद पेशाब या नहीं भी होती है। पेशाब के समय भयानक दर्द होना आदि लक्षण होते हैं। ऐसी अवस्था में गोक्षुरादि गुग्गुलु के उपयोग से बहुत- सा लाभ होता है, क्योकि यह मूत्राशय और मूत्रनली के विकारों को शमन करता हे, जिससे पेशाब साफ और खुल कर आने लगता है।
- मूञ्जाघात ( मूत्रस्तम्भ ) यह भी बहुत खतरनाक रोग है। इस रोग में पेशाब की थैली में पेशाब भरा रहता है, किन्तु पेशाब उत्तरता नहीं हैं। नाभि के नीचे तलपट (पेड़) फूल जाता है। पेशाब करने की इच्छा होती है, किन्तु पेशाब नहीं होता। फिर बेचैनी, न्द्रा, मोह, बेहोशी आदि लक्षण होते : हैं। रोगी दर्द के मारे चिल्लाता रहता है, पेडू (बस्ति-प्रदेश) ५-ल कर गाँठ-सी हो जाती है और वह दबाने में कठोर मालूम पड़ता और रोगी को उससे विशेष कष्ट होता है। इसमें रबर की सलाई जननेन्द्रिय में डाल कर पेशाब कराना चाहिए–साथ ही गोक्षुरादि गुग्गुलु का भी सेवन गोक्षुरादि क्वाथ के साथ यवक्षार और मिश्री मिला कर करना चाहिए।
- शुक्र-प्रमेह या शुक्र की क्षीणता में यह बहुत लाभ करता है। गोदुग्ध के साथ कुछ दिनों तक लगातार इसका सेवन करने से शरीर में शुक्र की वृद्धि हो शरीर हष्ट-पष्ट हो जाता है। यह वृष्य और रसायन भी है।