Durvadi Ghrit

दूर्वादि घृत
गुण और उपयोग (Uses and Benefits) :
- यह घृत मुख से रक्त आता हो तो पीने को देना, नाक से रक्त आता हो तो नस्य देना, कान या आँख से रक्त आता हो, तो कान या आँख में डालना और लिङ्ग, योनि अथवा गुदा से रक्त आता हो तो उत्तर बस्ति या अनुवासन बस्ति द्वारा देना चाहिए।
- रक्तपित्त में पित्त की विकृति से रक्त दूषित होकर वायु द्वारा कभी ऊपर, कभी नीचे और कभी रोमछिदर द्वारा बाहर निकलता है। यद्यपि इस रोग में कफ विकृत हो जाता है, परन्तु पित्त का प्रकोप विशेष रहता है। अतएव प्यास लगना, शरीर में जलन, दाह, मुँह सूखना, चक्कर आना, शीतल पदार्थ खाने की इच्छा ज्यादा होना आदि लक्षण होते हैं। ऐसी हालत में इस घृत के उपयोग से शीघ्र लाभ होते देखा गया है।
- साथ में प्रवालपिष्टी, कहरवा पिष्टी, अशोकारिष्ट आदि दवाओं में से भी किसी का सेवन करते रहने से शीघ्र लाभ होता है।
मात्रा और अनुपान (Dose and Anupan) :- 5 माशे से । तोला, बराबर मिश्री मिला कर, सबेरे-शाम सेवन करें l
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि ( Main Ingredients and Method of Preparation): – दूब, अनार के फूल, मंजीठ, कमल, केशर, गूलर के फूल, खस, नागरमोथा, सफेद चन्दन, पद्माख, अडूसा के फूल, केशर, गेरु और नागकेशर-प्रत्येक 1 -1 तोला लेकर कपड्छन चूर्ण बना जल में पीस कर कल्क बना लें। फिर उसमें बकरी का दूध, घी, पेठे का रस, आयापान का रस और चावल का पानी–प्रत्येक 64-64 तोला मिला कर मन्द आँच पर पकावें। जब घृत सिद्ध हो जाय, तब नीचे उतार उसे कपड़े से छान कर रख लें। -सि. यो. सं.