Dhananjye Vati(धनंजय बटी)
धनंजय बटी
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि : सफेद जीरा, चित्रक, चव्य, काला जीरा, बच, दालचीनी, इलायची, कचूर, हाऊबेर, तेजपात, नागकेशर–प्रत्येक 7-7 तोला, सौंफ 6 माशा, अजवायन, पीपलामूल, सज्जीखार, हर, जायफल, लौंग–प्रत्येक 2-2 तोला, धनियाँ और तेजपात 3-3 तोला, पीपल और सांभर नमक 4-4 तोला, काली मिर्च 7 तोला, निशोथ 8 तोला, समुद्र लवण, सेंधानमक और सोंठ 70-0 तोले, चूक या अम्लवेत 32 तोले, पकी इमली 76 तोले-_सब को कूट-कपड़छन चूर्ण कर नींबू के रस में 3 दिन घोंट कर, 3-3 रत्ती की गोलियाँ बना, सुखा कर रख लें। —बृ. नि. र.
मात्रा और अनुपान : १ से 8 गोली दिन में गर्म जल के साथ दें।
गुण और उपयोग:
- यह बटी दीपन-पाचन-अग्निवर्धक है तथा अजीर्ण, शूल, मन्दाग्नि, बद्धकोष्ठ, पेट फूलना, अपचन, पेट का दर्द, आमाजीर्ण तथा विष्टब्धाजीर्ण दूर करती है। |
- अजीर्ण रोग 3 प्रकार के होते हैं। यथा–कफ-दोष से आमाजीर्ण, पित्त-दोष से विदग्धाजीर्ण और वात-दोष से विष्टब्धाजीर्ण ऐसे तीन भेद हैं। इनके अतिरिक्त रसशेषाजीर्ण भी होता है। इनमें दोषानुरूप चिकित्सा होने से जल्दी लाभ होता है। यथा–कफ से उत्पन्न आमाजीर्ण में कफ-दोषनाशक, पित्त-दोष से उत्पन्न विदग्धाजीर्ण में पित्त-दोषनाशक और वायु से उत्पन्न विष्टब्धाजीर्ण में वात-दोषनाशक दवा का उपयोग करने से लाभ होता है।
- यह बटी वात और कफ-दोषनाशक है। अतएव, विष्टब्धाजीर्ण और आमाजीर्ण में इसका विशेष उपयोग किया जाता है।
- सामान्यतया जिस अजीर्णनरोग में पेट में वायु भरा रहना, दर्द होना, विबंध, पेट में भारीपन और दर्द विशेष हो ऐसी दशा में धनंजय. बटी देने से बहुत लाभ होता है।
- यह प्रकुपित वात और कफ-दोष को शान्त कर पक्वाशय में पाचक-रस की उत्पतति कर अजीर्ण दोष को मिटा देती है, जिससे वायु का संचार हो कर दस्त साफ होने लगता तथा भूख भी खुल कर लगती है।