Dashmool Kwath
दशमूल क्वाथ
गुण और उपयोग (Uses and Benefits)
- इस क्वाथ का उपयोग वात और कफ-सम्बन्धी विकारों में विशेष होता है।
- प्रसूत रोग के लिए यह क्वाथ प्रसिद्ध है। वात प्रकोप में भी अनुपान रूप से इसका प्रयोग किया जाता है।
- मुँह सूखना, हाथ-पाँव आदि अवयव ठंडे पड़ जाना, चक्कर आना, पसीना अधिक आना, खांसी, श्वास, छाती तथा पसली का दर्द, तन्द्रा (झपकी आना) और सिर-दर्द युक्त सन्निपातज्वर, सूतिका (प्रसूत) ज्वर और शोथ रोग में इसके प्रयोग से अच्छा लाभ होता है।
- यदि सन्निपातज्चर में प्रलाप और नींद न आना, ये उपद्रव हों, तो इस क्वाथ के योग में लौंग, ब्राह्मी, जटामांसी, तगर, शंखाहुली और सर्पगन्धा–प्रत्येक -7 तोला और मिला दें। इससे यह क्वाथ बहुत गुणकारी हो जाता है।
- प्रसव के बाद प्यास अधिक लगना, रक्त की कमी, पेट का दर्द, संपूर्ण अंग में दर्द होना, अन्न में अरुचि आदि लक्षण उपस्थित होने पर इस क्वाथ का उपयोग करना अतिहितकर है।
- प्रसव के बाद कमजोरी और थकान आना, प्रसूता स्री के लिये स्वाभाविक बात है।
- बच्चा पैदा होने के बाद पेट में दूषित रक्तादि रह जाते हैं, बाहर निकलना आवश्यक रहता है। नहीं निकलने से अनेक. प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं, जैसे-ज्वर, मक्कलशूल, अन्न में अरुचि, रक्त की कमी, सम्पूर्ण शरीर में दर्द होना, शरीर सूज आना आदि। ऐसी खतरियों का दूध भी दूषित हो जाता है, जिसका बुरा प्रभाव बच्चे के ऊपर होता है।
- बच्चा पैदा होने से पहले यदि ज्चरादि आता रहता है, तो वह रोग भी प्रसव के बाद प्रकोप कर जाता है। इन उपद्रवो को रोकने या दूर करने के लिये दशमूल क्वाथ का प्रयोग करना बहुत उपयोगी है।
- बच्चा पैदा होने के दिन से लेकर दस दिन पर्यन्त दशमूल क्वाथ प्रसूता को अवश्य देना चाहिए; क्योंकि दस दिनों में प्रसवजन्य अनेक तरह की वेदना बच्चों को होती है।
- इस वेदना को दूर करने के लिये “दशमूल क्वाथ” का उपयोग बहुत लाभदायक है। फिर प्रसूतजन्य कोई भी बीमारी होने का डर नहीं रहता है।
- महाराष्ट्र प्रदेश में बालान्त काढ़ा नं० 1 के नाम से भी यह प्रचलित है। बड़ी फार्मेसियाँ आसवारीष्ट प्रक्रिया के अनुसार सन्धान विधि से बनाकर दिद्रायार्थ प्रस्तुत करती हैं। इस प्रकार बनाने से यह बहुत टिकाऊ एवं गुणकारी भी बन जाता है।
- प्रसूता को अधिक उष्ण उपचार से बचावें। अधिक उष्ण उपचार से शरीर में गर्मी विशेष होकर अनेक उपद्रव उत्पन्न हो जाते हैं, जैसे–मुँह में छाले हो जाना, हाथ-पाँव और आँखों में जलन, दूध कम होना, इतना ही नहीं, बच्चे के मुंह में भी छाले हो जाते हैं, शरीर पर छोटीछोटी फुन्सियाँ हो जाती हैं, दूध कम मिलने की वजह से बच्चा बराबर रोता रहता है। बच्चे का शरीर विशेषकर चेहरा लाल वर्ण का हो जाता है।
- इसमें भी उष्णताजन्य उपद्रवों को दूर करने के लिए इस काढ़े का प्रयोग करें।
- वात-रोग में भी क्वाथ का उपयोग अनुपानरूप में दिया जाता है।
- पुराने वायु रोग में वातघ्न औषधियाँ जैसे–महायोगराज गूगल, वातारि बटी, वात-चिन्तामणि रस, अमर सुन्दरी बटी (रस) आदि दवाओं के साथ अनुपानरूप में दिया जाता है।
मात्रा और अनुपान (Dose and Anupan)– इसमें से 4 तोला चूर्ण लेकर 6 तोला जल में पकावें, जब 4 तोला जल बाकी रहे, तब नीचे उतार, कपड़े से छानकर पिलावें। यह क्वाथ आवश्यकतानुसार दिनभर में 2-3 बार दें।
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि ( Main Ingredients and Method of Preparation) – छोटी और बड़ी कटेरी का पंचांग, शालिपर्णी और पृरिनिपर्णी का पंचांग, बेलछाल, गम्भारी-छाल, सोनापाठा-छाल, अरणी-छाल, पाढ़, गोखरू का पंचांग या फल–प्रत्येक समान भाग लेकर यदकुट चूर्ण कर रख लें। –शा. ध. सं.