Brahmi Ghrit

ब्राह्मी घृत
गुण और उपयोग (Uses and Benefits) :
- इसके सेवन से अपस्मार, उन्माद, बोलने की कमजोरी अर्थात् साफ-साफ न बोलना अथवा कमजोरी से मिनमिना कर बोलना, देर से हकलाकर या जल्दी-जल्दी बोलना आदि, बुद्धि की निर्बलता, मनोदोष, स्मरण शक्ति (याददाश्त) की कमी, स्वरभंग (गला बैठ जाना), दिमाग की कमजोरी, वातरक्त तथा कुष्ठरोग दूर होते हैं।
- आयुर्वेद में इसका गुण-वर्णन करते हुए लिखा है कि- इस घृत का केवल 1 सप्ताह मात्र सेवन करने से स्वर किन्नरों के समान मधुर और सुरीला हो जाता है। 2 सप्ताह तक सेवन करने से मुख कान्तिमान हो जाता है।
- यदि नियमपूर्वक 1 माह तक इसका सेवन किया जाय, तो मनुष्य की स्मरण शक्ति बहुत बढ़ जाती है।
मात्रा और अनुपान (Dose and Anupan) : 6 माशे से 1 तोला, बराबर मिश्री के साथ दें। ऊपर से धारोष्ण दूध पिलावें ।
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि ( Main Ingredients and Method of Preparation): – मूल और पत्रसहित ताजी ब्राह्मी को पानी से धोकर, कूट करके निकाला हुआ स्वरस या क्वाथ तीन सेर बारह छटाँक 1 तोला में 64 तोला घी और बच, कूठ, शंखपुष्पी तीनों को मिलाकर 8 तोला कल्क बना सबको एकत्र मिला कर पकावें। जब घृत मात्र शेष रह जाय, उसे छान कर रख लें।
वक्तव्य : द्रव पदार्थों को द्रवद्वैगुण्य परिभाषा के अनुसार द्विगुण लिया गया है।