Ashok Ghrit

अशोक घृत
गुण और उपयोग (Uses and Benefits) :
- यह घृत रक्त-सफेद, नीले-पीले रंग के प्रदर रोग, कुक्षि का दर्द, कमर और योनि की पीड़ा, मन्दाग्नि, अरुचि, पाण्डु, दुबलापन, श्वास, कामला आदि स्त्रियों के रोगों का नाश करता है।
- यह बल और शरीर की कान्ति को भी बढ़ाता है।
- यह घृत स्त्रियों के लिए अमृत के समान लाभदायक है।
- प्रदर रोग में विशेषतया पित्त और वायु के दोष पाये जाते हैं यथा-हाथ-पाँव में जर्लन होना, आँखों के सामने चिनगारियाँ उड़ना, अन्न नहीं पचना, भूख न लगना, कमर में दर्द और सिर में दर्द होना, आलस्य आदि।
- इसमें अशोक घृत के उपयोग से बहुत शीघ्र लाभ होता है, क्योंकि यह प्रकुपित वायु तथा पित्त का शमन कर उसके विकारों को दूर करता है और पाचक पित्त को उत्तेजित करके हाजमा ठीक करता हें; फिर भूख भी लगती है तथा खाना हजम होने लगता है। धीरे-धीरे शरीर पुष्ट होकर रोगिणी स्वस्थ हो जाती हैं।
मात्रा और अनुपान (Dose and Anupan) :- 1-7 तोला प्रातः-सायं दूध अथवा गर्म पानी के साथ दें।
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि ( Main Ingredients and Method of Preparation): – 64 तोला अशोक छाल को 561 छटराँक 2 तोला जल में पावें, चौथाई जल रहने पर छान लें। यह काढ़ा और जीरे का क्वाथ, चावलों का पानी, बकरी का दूध तथा भाँगरे का रस-प्रत्येक 28-28 तोला और जीवनीयगण (जीवक, ऋषभक, मेदा, महामेदा, काकोली, क्षीरकाकोली, मुद्गपर्णी, माषपर्णी, जीवन्ती, मुलेठी), चिरौंजी, फालसा, रसौत, मुलेठी, अशोक की जड़ की छाल, मुनक्का, शतावर, चौलाई की जड़–प्रत्येक 2-2 तोलालें। इनके कल्क के साथ 28 तोला घृत पकावें। घृतपाक सिद्ध हो जाने पर, उतार कर ठंडा हो जाने के बाद छान कर 32 तोला शक्कर (चीनी) पीसकर मिला कर रख लें।
वक्तव्य : द्रव पदार्थों को द्वैगुण्य परिभाषा के अनुसार द्विगुण लिया गया है।