Arjun Ghrit

अर्जुन घृत
गुण और उपयोग (Uses and Benefits) :
- मिथ्या आहार-विहार और अधिक तीव्र औषधियां तथा अधिकतर गरिष्ठ भोजन के सेवन से उदर में वायु का संचय हो जाता है और वह गैस का रूप धारण कर लेती है।
- गैस के कारण घबराहट और दिल की धड़कन अधिक होने लगती है। यहाँ तक कि श्वास भी कठिनाई से आता है। कभी-कभी गैस के अतिरिक्त, स्वतन्त्र रूप से भी यह रोग हो जाता है।
- इस रोग में मिश्री के साथ इस घृत के उपयोग से एवं ऊपर से दुग्ध पिलाने से शीघ्र लाभ होता है।
- इस घृत का पथ्यपालन के साथ कुछ दिनों तक निरन्तर सेवन करने से सकल प्रकार से हृदय-रोग निस्सन्देह नष्ट हो जाते हैं और हृदय की क्रिया व्यवस्थित रूप से होने लगती है।
मात्रा और अनुपान (Dose and Anupan) :- 3 से 6 माशे तक, मिश्री के साथ चटाकर ऊपर से गो-दुग्ध पिलावें।
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि ( Main Ingredients and Method of Preparation): – मूर्च्छित गो-धृत । सेर और अर्जुन की छाल 2 सेर लेकर प्रथम अर्जुन की छाल को जौकुट करें। पश्चात् इसमें 6 सेर जल मिला कर क्वाथ करें। 4 सेर जल शेष रहने पर उतार कर छान लें। बाद में अर्जुन की छाल 10 तोला लेकर उसका कल्क बनावें, फिर उपरोक्त क्वाथ, घृत और कल्क को एकत्र मिला घृतपाक विधि से. घृत पाक कर लें। घृत सिद्ध हो जाने पर छान कर सुरक्षित रख लें। —भै. र.