Amritprash Avleh

अमृतप्राशावलेह
गुण और उपयोग (Uses and Benefits) :-
- यह उत्तम पौष्टिक है। खाँसी, क्षय, दमा, दाह, तृषा, रक्तपित्त और शुक्रक्षय में इसका प्रयोग करें।
- कृश और जिनके शरीर का वर्ण और स्वर क्षीण हो गया हो उनको, तथा विशेष स्री-प्रसङ्ग करने वालों और रोगों से कृश हुए व्यक्तियों को यह पुष्ट करता है।
- राजयक्ष्मा और बच्चों के सूखा रोग में इसके सेवन से विशेष लाभ होता है। नोट
- इस योग में मांस-रस भी देने का विधान है। श्रीयुत् आचार्य यादवजी का कहना है कि जो मांसाहारी न हों, उन्हें मांस-रस के स्थान पर उड़द का क्वाथ डालकर यह योग तैयार करना चाहिए।
मात्रा और अनुपान (Dose and Anupan) :- आधा तोला से 1 तोला तक गौ या बकरी के दूध के अनुपान से दें।
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि ( Main Ingredients and Method of Preparation): – जीवक, ऋषभक, विदारी कन्द, सोंठ, जीवन्ती, कचूर, सरिवन, पिठवन, माषपर्णी (बनमाष), मुद्गपर्णी (वनमूंग), मेदा, महामेदा, काकोली, क्षीर-काकोली, कटेरी (छोटी कटाई भटकटैया), बड़ी कटेरी, सफेद पुनर्नवा, मुलेठी के वांच के बीज, शतावर, ऋद्धि, फालसा, भारङ्गी मूल, मुनक्का, गोखरू छोटा, छोटी पीपल, सिंघाड़ा, भुई आँवला, दुद्धी, कंघी, बरियारा, उन्नाव, अखरोट, पिण्डखजूर, बादाम, पिस्ता, चिलगोजा, खुरमारी, चिरौंजी–प्रत्येक 1- 1तोला लें। इनका कपड्छन चूर्ण कर, जल में पीस कर कल्क बना लें फिर उसमें आँवले का रस 64 तोला, ताजी शतावरी का रस 64 तोला, बिदारी कन्द का स्वरस 64 तोला, बकरी के मांस का रस 64 तोला, बकरी या गाय का दूध 64 तोला, गौ का घृत 28 तोला मिलाकर घृतपाक-विधि से तैयार करें। घृत सिद्ध होने पर कपड़े से छानकर उसमें 32 तोला शहद और मिश्री 64 तोला तथा तेजपात, छोटी इलायची, नागकेशर, दालचीनी और काली मिर्च–प्रत्येक का महीन चूर्ण 2-2 तोला और बंशलोचन का चूर्ण 6 तोला सबको यथायोग्य मिलाकर कांच के बर्तन में सुरक्षित रख लें। –सि. यो. सं.