Ahiphenasava

अहिफेनासव
गुण और उपयोग (Uses and Benefits) :-
- इसके सेवन से भयंकर अतिसार और हैजा का नाश होता है।
- इस आसव का उपयोग वात और कफ-जन्य विकारों में अधिक किया जाता है।
- वात जन्य अतिसार में जब किसी दवा से लाभ न हो, तो इसका उपयोग करना चाहिए। इससे अवश्य लाभ होगा।
- इसी तरह हैजा की भयंकर अवस्था में शरीर ठण्डा हो जाना, नाड़ी अपने स्थान से छूटती हुई दिखाई पड़ना, बेहोशी, सम्पूर्ण शरीर में ऐंठन, दाँत बंध जाना, दस्त बहुत पतला और दुर्गन्धयुक्त होना, अनपच दस्त होना, वमन बड़े जोर के साथ होना, पेशाब बन्द हो जाना, पड़े-पड़े ही दस्त हो जाना आदि उपद्रव होने पर अहिफेनासव चीनी या बताशे अथवा गर्म पानी में मिलाकर 15-15 मिनट पर बराबर देते रहें और वायु शमन के लिए तथा खून में गर्मी लाने के लिए हाथ-पाँव की मालिश अजवायन की पोटली से करें। इससे बहुत शीघ्र लाभ होता है।
- इसके साथ ही हदय में कुछ ताकत बनी रहने के लिए मकरध्वज का भी उपयोग तुलसी-पत्र स्वरस और मधु के साथ करना चाहिए। इससे रक्त में गमी आकर रक्त का संचालन होने लगता है, साथ ही हृदय और नाड़ी की गति में भी सुधार होता है।
मात्रा और अनुपान (Dose and Anupan) :- 2 से 10 बूँद, चीनी या बताशे अथवा पानी में डाल कर पीना चाहिए।
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि ( Main Ingredients and Method of Preparation): – अफीम 76 तोला, नागरमोथा, जयफल, इन्द्रजौ, छोटी इलायची के बीज–प्रायेक 4-4 तोला लें।
सन्धान : चीनी मिट्टी या कांच के पात्र में 5 सेर महुए की देशी शराब डाल दें, इसमें पहले अफीम को घोल कर, बाद में शेष चारों वस्तुओं के चूर्ण डाल करके मुख बन्द कर । मास तक रखने के बाद छान लें। भै. र.
नोट: इसके पात्र को धूप में रखने से 75 दिन में ही अच्छा सन्धान हो जाता है और गुण भी विशेष करता है। प्रायः इसी तरह से वैद्य लोग इसका निर्माण करते हैं।