Abhyarishta

अभ्रयारिष्ट
गुण और उपयोग (Uses and Benefits ) –
- रोग और रोगी का बल, रोगी की अग्नि (पाचन-शक्ति) और कोष्ठ का विचार कर उचित मात्रा में इसका सेवन करने से बवासीर और आठ प्रकार के उदर रोग नष्ट होते हैं।
- यह मल-मूत्र की रुकावट को दूर करता है और अग्नि को भी बढाता है।
- साधारण रेचक और पाचक तथा (कब्जियत) को दूर करने वाला है।
- इसके अतिरिक्त-सब प्रकार के अर्श (बवासीर),उदररोग,मन्दारिन, मूत्राघात, यकृत् ,गुल्म और हृद्रोग का नाश करता है।
- यह जमालगोटे जैसी रेचक (दस्तावर) नहीं है। जमालगोटे से जो दस्त (रेचक) होते हैं, उसमें आँतों की क्रिया शिथिल (निर्बल) हो जाती है, उससे विरेचन के बाद आँतों में पुनः मल संचय होने लगता और उससे दूषित गैस उत्पन्न हो अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
- अभयारिष्ट द्वारा जो दस्त होते हैं उसमें आँतें कमजोर न हो कर सबल बनी रहती हैं, जिससे दूषित मल-संचय नहीं होता है।इसका उपयोग विशेष कर अर्श (बवासीर) के रोग में किया जाता है।
- बवासीर बहुत ही परेशान करने वाली बीमारी है। इससे मस्सों में दर्द बहुत जोर का होता है। इस दर्द को शान्त करने के लिये अर्शकुठार, बोलबद्ध रस, कामदुधा रस, सूरण बटक आदि के सेवन से किसी एक दवा का सेवन करने के उपरान्त जब दर्द का जोर कम हो, तब ` अभयारिष्ट के सेवन से बहुत फायदा होता है, क्योंकि बवासीर में दस्त कब्ज हो जाना प्रधान लक्षण है। दस्त कब्ज होने के कारण जोर लगाने (छिकने) से और भी दर्द होता है, उस कब्जियत को यह बहुत शीघ्र दूर कर देता है। साथ सूजन को भी दूर करता है। बवासीर का सन्देह होते ही अथवा प्रारम्भिक अवस्था में (दर्द होने से पहले) ही यदि अभयारिष्ट का सेवन करा दिया जाये, तो यह रोग आगे न बढ़ कर वहीं रुक जाता है।
- उदर रोग में मन्दारिन बहुत भयंकर और दुखदायी रोग है। यदि मन्दारिन के कारण मल-संचय होकर दस्त कब्ज (बद्धकोष्ठ) हो गया हो, तो इच्छा भेदी, अश्वकंचुकी आदि दवा का उपयोग करना चाहिए, परन्तु इनमें जमालगोटे का मिश्रण होने से कुछ हानि होने का डर रहता है। अतएव, अभयारिष्ट में बराबर कमार्यासव मिला कर लेने से बहुत शीघ्र लाभ होता है।
- यह मल और मूत्र को साफ करके अग्नि (जठरारिन) को बढ़ाता, उदर के रोगों को नष्ट करता है और पाचक-रस की उत्पत्ति कर अन्न को पचाने की शक्ति पैदा करता है।
मात्रा और अनुपान (Dose and Anupan) – १ से २ तोला, प्रातः और सायं भोजन के बाद जल मिलाकर दें।
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि ( Main Ingredients and Method of Preparation); -बड़ी हरे का छिलका ५ सेर, मुनक्का २।। सेर, महुए के फूल ४० तोला, वायविडंग ४० तोला लें तथा कूटने योग्य चीजों का जौकुट चूर्ण करें।
क्वाथ के लिये जल-उपरोक्त दवाओं को एक मन ११ सेर १६ तोला पानी में डालकर पकावें। चौथाई जल शेष रहने पर शीतल कर, छान लें।
प्रक्षेप-इसमें 5 सेर गुड़ घोल दें। बाद में छोटा गोखरू, निशोथ, धनियाँ, धाय का फूल, इन्द्रायण की जड़, चव्य, सोंठ, दन्तीमूल और मोचरस-प्रत्येक ८-८ तोला मोटा चूर्ण करें और इसमें डाल दें।
सन्धान- किसी चिकने और बड़े बर्तन में डालकर सन्धान कर दें। एक मास बाद निकाल कर छान लें।
सन्धान-किसी चिकने और बड़े बर्तन में डालकर सन्धान कर दें। एक मास बाद निकाल कर छान लें।
वक्तव्य– इसमें हरे का छिलका अत्यन्त कषाय द्रव्य होने से ५ सेर गुड़ से मधुरता ठीक नहीं होती और मधुरता की कमी से अरिष्ट उत्तम नहीं बनता। अतः गुड़ का परिमाण ५ सेर के स्थान पर ८ सेर किया गया है। इससे अच्छा बनता है, ऐसा हमारा अनुभव है।