Amritbhallatak

अमृतभल्लातक
गुण और उपयोग (Uses and Benefits) :-
- समस्त प्रकार के कफ और वातरोगों में विशेषतः जीर्ण प्रतिश्याय, पक्षाघात और कमर के दर्द में इसका उत्तम उपयोग होता है।
- यह योग उत्तम रसायन में वीर्यवर्द्धक और बाजीकरण है।
- इसका सेवन करने वाले मनुष्य को गरम भोजन, अधिक गरम जल से स्नान, धूप में बैठना या धूप में घूमना, अग्नि के पास बैठना निषेध है। इसके सेवन काल में यदि शरीर में कहीं भी खाज आने लगे तो वहाँ नारियल का तैल कुछ समय तक लगाना चाहिए।
मात्रा और अनुपान (Dose and Anupan) :- 1-1 तोला सुबह-शाम खाकर ऊपर से गाय का धारोष्ण अथवा गरम करके ठण्डा किया हुआ दूध पिलावें।
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि ( Main Ingredients and Method of Preparation): – अच्छे पके और पुष्ट भिलावों को एक दिन गोमूत्र तथा तीन दिन गो-दुग्ध में भिंगो कर रखें। प्रतिदिन जल से धोकर दूसरे ताजे द्रव में भिगो दें। पीछे कपड़छन किए हुए ईट के चूर्ण से खूब मसलकर, जल से धोकर सुखा लें। इस प्रकार शुद्ध किए हुए भिलावे को औषधि के प्रयोग में लें।256 तोला शुद्ध भिलावे की टोपी सरौते से काटकर दो टुकड़े कर 1024 तोला जल में पकावें। जब चतुर्थांश जल शेष रहे तब उसको कपड़े से छानकर, उसमें दूध 25 तोला गो घृत 64 तोला मिलाकर मन्द आँच पर पकाकर खोवा बना लें, पश्चात् नीचे उतार, उसमें मिश्री का कपड़छन चूर्ण 64 तोला मिलाकर, मथानी से मथकर, काँच या चीनी मिट्टी के पात्र में भर दें और सात दिन के बाद प्रयोग करें। | —सि. यो. सं