Jatiyadi Kashyam / Kada
जात्यादि क्वाथ ( कषाय )
गुण और उपयोग (Uses and Benefits)
- इस क्वाथ का प्रयोग रक्त-विकार सम्बन्धी विकारों, फोड़े फुन्सी होना, मुँह में छाले पड़ जाना, गले में छाले पड़ जाना आदि रोगों में बाह्य तथा आभ्यन्तरिक दोनों विधि से होता है।
- मुखपाक, मसूढ़े फूलना और मुंह तथा गले में छाले पड़ना इन रोगों में उदुम्बरसार को जल में मिला कर कुलला करना, खादिरदि तैल लगाना, या उसको मुँह में रख कर फिराना,यदि दस्त की कब्जियत हो, मंजिष्ठादि चूर्ण सोते समय देना और मुखपाक आदि रक्त-विकार या पेट की गमी हो, तो सारिवादि हिम पीने को और शतपत्र्यादि चूर्ण खाने को देना चाहिए। -+सि. यो. सं.
मुख्य सामग्री तथा बनाने विधि ( Main Ingredients and Method of Preparation) – चमेली की पत्ती, दाडिम (अनार) की पत्ती, बबूल की छाल और बेर की जड़–प्रत्येक 6-6 माशे लें। सब को जौकुट कर 64 तोला जल में पकावें, आधा जल शेष रहने पर कपड़े से छान, उसमें फिटकरी 10 रत्ती और शुद्ध सुहागा 10 रत्ती मिलाकर कुल्ला करने से मुँह और गले के छालों, गलग्रन्थि शोथ, उपजिह्वा प्रदाह आदि में अच्छा लाभ होता है।